करवा चौथ पर छलनी से पति को क्यों देखते हैं (सौ.सोशल मीडिया)
Karwa Chauth Ka Chand: प्रेम, समर्पण का प्रतीक करवा चौथ का व्रत हर साल पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा, प्यार और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार खास तौर पर विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन वे सुबह से चांद निकलने तक निर्जला व्रत रखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं।
जैसा की आप जानते हैं कि, भारत विविधताओं वाला का देश है और इसकी विविधता ही सबसे बड़ी पहचान है। बता दें, यही विविधता हर तीज त्योहारों में भी झलकती है। जैसे कि करवा चौथ सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और समर्पण का सुंदर प्रतीक है।
इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से लेकर चांद निकलने तक बिना खाना-पानी के व्रत रखती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाएं चांद और अपने पति को छलनी से क्यों देखती हैं? और पूजा करते समय वह कौन सी एक गलती है, जो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।
हिन्दू लोक मान्यताओं के अनुसार, छलनी साफ़-सफाई और एकाग्रता का प्रतीक मानी जाती है। जैसे छलनी मोटे और बारीक दानों को अलग करती है और अशुद्धियों को हटाती है, वैसे ही करवा चौथ की छलनी बुरे विचारों और विकर्षणों को हटाकर सिर्फ शुद्धता दिखाती है।
चांद को छलनी से देखना देवता से आशीर्वाद लेने का संकेत है, और उसी छलनी से पति को देखना उस पवित्र ऊर्जा को वैवाहिक बंधन में जोड़ने का प्रतीक है।
एक मान्यता यह भी है कि पुराने समय में महिलाएं सीधे पुरुषों की ओर नहीं देखती थीं, इसलिए वे घूंघट का इस्तेमाल करती थीं। करवा चौथ की पूजा में चंद्र देव की आराधना होती है, इसलिए यहां भी एक तरह का घूंघट जरूरी माना गया। छलनी उस घूंघट की तरह काम करती है – हल्की, पारदर्शी लेकिन सीधी नजर से बचाने वाली। कुछ घरों में पूजा के समय छलनी पर दीपक भी रखा जाता है।
कई बार महिलाएं उत्साह में पहले सीधे चांद को देख लेती हैं, लेकिन ऐसा करना परंपरा के अनुसार शुभ नहीं माना जाता। सही क्रम इस प्रकार है- पहले चांद को अर्घ्य (जल) अर्पित करें, फिर छलनी से चांद को देखें, उसके बाद उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखें और अंत में पति के हाथ से पानी या खाना लेकर व्रत खोलें।
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पहली बार व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए कुछ आसान सुझाव- व्रत से एक दिन पहले खूब पानी, नारियल पानी, फल और हल्का भोजन लें ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे। पारंपरिक लेकिन आरामदायक कपड़े पहनें, खासकर लाल, मरून या गुलाबी रंग शुभ माने जाते हैं। शाम को सामूहिक पूजा में ज़रूर शामिल हों, जहां सब मिलकर कथा सुनते हैं और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है।