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क्यों भगवान शिव की पूजा में शंख बजाना होता है वर्जित, जानिए इसकी पौराणिक कथा

Lord Shiva Pujan: शिवजी की पूजा में वैसे तो कई नियम होते है लेकिन पूजा में शंख बजाना वर्जित माना जाता है। किसी भी पूजा के समय शंख बजाने का विधान होता है लेकिन शिव पूजा में वर्जित क्यों होता है जानते।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Jul 24, 2025 | 10:20 AM

भगवान शिव की पूजा में वर्जित है शंख बजाना (सौ.सोशल मीडिया)

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Lord Shiva Pujan: सावन का पावन महीना चल रहा है जिसमें सोमवार की पूजा के बाद अब त्योहारों की झड़ी लगने वाली है। हरियाली तीज व्रत, नाग पंचमी, और रक्षाबंधन जैसे पर्व मनाए जाएंगे। सावन के महीने को भगवान शिव की पूजा के लिए सबसे खास महीने के रूप में जाना जाता है। सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने से शिवभक्तों को बाबा का आशीर्वाद मिलता है।

शिवजी की पूजा में वैसे तो कई नियम होते है लेकिन पूजा में शंख बजाना वर्जित माना जाता है। किसी भी पूजा के समय शंख बजाने का विधान होता है लेकिन शिव पूजा में वर्जित क्यों होता है चलिए जानते हैं इसके बारे में…

भगवान विष्णु को प्रिय

सनातन धर्म में माना जाता है कि, सभी धार्मिक कार्यों और मंदिरों में पूजा के दौरान शंख बजाना चाहिए। यहां सुख-समृद्धि दिलाने वाले शंख को भारतीय संस्कृति में मांगलिक चिन्ह के रूप में जाना जाता है। शंख, भगवान विष्णु को प्रिय होता है। कहते है कि शंख से जल अर्पित करने पर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हो जाते हैं। इसके विपरीत शिवजी की पूजा में शंख से जलाभिषेक और बजाने जैसी कोई विधि नहीं अपनाई जाती है।

शंख से जुड़ी पौराणिक कथा

शिवपुराण में शंख से जुड़ी पौराणिक कथा का उल्लेख किया गया है। कथा के अनुसार, एक बार दैत्यराज दंभ ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का कठोर तप किया था। जिसकी तपस्या से खुश होकर विष्णु जी ने आशीर्वाद दिया। जहां पर आगे दैत्यराज दंभ के घर एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया। यहां पर बड़े होने के लिए शंखचूड़ ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने वर मांगने के लिए कहा, तो शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रम्हाजी ने हां कहने के साथ ही तीनों लोकों में मंगल करने वाला श्रीकृष्णकवच दे दिया। इसके बाद ब्रम्हाजी ने शंखचूड के तपस्या से प्रसन्न होकर उसे धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा देकर अंतर्धान हो गए। ब्रह्माजी की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह संपन्न हुआ।

ये भी पढ़ें- हरियाली तीज व्रत में महिलाएं घर में बनाएं 5 सात्विक चीजें, जानिए आसान रेसिपी

शंखचूड़ को आया अहंकार

यहां पर अजेय होने का वरदान मिलने के बाद शंखचूड़ राजा को काफी अहंकार आया। तीनों लोकों को अपनी मुट्ठी में की। इससे घबराकर देवी-देवता विष्णुजी के पास पहुंचे।भगवान विष्णु ने खुद दंभ पुत्र का वरदान दे रखा था इसलिए विष्णुजी ने शंकर जी की आराधना की, जिसके बाद शिवजी ने देवताओं की रक्षा के लिए चल दिए, लेकिन श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे। इसके बाद विष्णु जी ने अंहकार में डूबे शंखचूड़ से वामन रूप धरकर श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया और शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। इसके बाद भगवान शिव ने अपने विजय नामक त्रिशूल से शंखचूड का वध कर दिया। शंखचूड़ की हड्डियों से शंख की उत्पत्ति हुई। इस वजह से भगवान शिव की पूजा में शंख वर्जित होता है।

Why blowing conch is forbidden in the worship of lord shiva

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Published On: Jul 24, 2025 | 10:20 AM

Topics:  

  • Lifestyle News
  • Lord Shiva
  • Sawan Somwar

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