गुरू पूर्णिमा (सौ. डिजाइन फोटो)
हर किसी के जीवन में एक मार्गदर्शक होता है जो जीवन के हर मोड़ पर आपको मार्गदर्शन प्रदान करता है। हिंदू धर्म कहें या वैदिक काल में माता-पिता को ही पहला गुरू माना गया है। इसका उदाहरण पौराणिक कथाओं में भगवान गणेशजी ने दिया था। इस संसार के पहले गुरू भगवान शिव माने गए है जिनकी आराधना भक्ति भाव के साथ करना बेहद जरूरी होता है। इस साल आाषाढ़ माह की गुरू पूर्णिमा 10 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी।
इस गुरू पूर्णिमा के अवसर पर दुनियाभर के समस्त गुरूओं का सम्मान करने की बात कही गई है। गुरू पूर्णिमा के दिन हर किसी को अपने गुरू या आराध्य को चुनना चाहिए जो जीवन के हर मोड़ पर आपका सहारा बनते है। चलिए जानते है अपने लिए आप सच्चे गुरू कैसे चुनें।
यहां पर बताते चलें कि, गुरू का वास्तविक अर्थ “अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला.वेदों, पुराणों, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में गुरु की महीमा का विस्तार से वर्णन किया है। इसके अलावा गुरु के बिना जीवन दिशाहीन होता है, इसलिए संत-महापुरुष और पुराण कहते हैं कि हर व्यक्ति को जीवन में गुरु जरुर बनाना चाहिए, जो आपका मार्गदर्शन कर सकें। इसे लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने यह भी कहा है कि, जैसे चारो वर्णों का मेरी भक्ति करना योग्य है ,वैसे ही गुरु की भक्ति करना योग्य है, जैसे गंगा नदियों में उतम है, वैसे ही शुभ कर्मों में गुरु सेवा उत्तम है।
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आपको बताते चलें , आपको अपना गुरू चुनने के लिए कई बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है।
यहां गुरू चुनने के साथ ही गुरू दीक्षा लेने की बात भी कही गई है। सनातन धर्म में जो लोग धार्मिक गुरु बनाते हैं पुराणों के अनुसार उन्हें दीक्षा लेना जरुरी होता है क्योंकि इसके बिना आपके द्वारा किये गए समस्त धार्मिक कार्य निष्फल हैं। गुरू दीक्षा के बिना कन्या दान, शिवालय निर्माण, देवालय निर्माण, कथा पूजन, व्रत, दान, तालाब निर्माण, कुआं निर्माण ऐसे कई कार्यों से मिलने वाला पुण्य लाभ आसानी से नहीं मिल पाता है।