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यहां कुएं में विराजमान हैं श्रीगणेश, हर दिन बढ़ रही है मूर्ति, जानिए क्या है इस बात का गवाह

10 दिवसीय गणेशोत्सव की शुरूआत कुछ ही दिनों में होने वाली है। गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर में हम आपको आज एक ऐसे गणेश मंदिर के बारे में बताने वाले हैं, जहां गणेश जी की मूर्ति प्रतिदिन बढ़ती रहती है।

  • By सीमा कुमारी
Updated On: Aug 19, 2025 | 06:33 PM

श्री वरसिद्धि विनायक स्वामी मंदिर (सौ.डिजाइन फोटो)

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Varasiddhi Vinayaka Temple: 27 अगस्त से दस दिवसीय जन्मोत्सव यानी गणेश चतुर्थी का महापर्व शुरू होने जा रहा है। यह पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में हर साल बड़े ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की धूम पूरे देश भर में होती है। खासतौर पर महाराष्ट्र और गुजरात में इस त्योहार की रौनक देखने लायक होती है।

गणेश चतुर्थी का ध्यान में रखते हुए आज हम आपको एक ऐसे गणेश मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर गणेश जी जल में विराजमान हैं और उनकी मूर्ति प्रतिदिन बढ़ती रहती है।

यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित कनिपकम श्री वरसिद्धि विनायक स्वामी मंदिर न केवल अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके पीछे की अद्भुत पौराणिक कथा और चमत्कारिक मान्यताएं इसे विशेष बनाती हैं।

यह विघ्ननाशक गणपति मंदिर तिरुपति से 68 किलोमीटर और चित्तूर से महज 11 किलोमीटर की दूरी पर है।

यहां कुएं में विराजमान हैं गणपति

प्राप्त जानकारी के अनुसार, कनिपकम श्री वरसिद्धि विनायक स्वामी मंदिर से जुड़ी कथा के अनुसार, प्राचीन काल में तीन भाई रहते थे, जिनमें एक गूंगा, दूसरा बहरा और तीसरा अंधा था।

तीनों ने मिलकर खेती करने की योजना बनाई। खेती के लिए पानी की आवश्यकता होने पर उन्होंने जमीन में कुआं खोदना शुरू किया। खुदाई करते समय उनका यंत्र किसी कठोर वस्तु से टकराया और तभी कुएं से रक्त प्रवाहित होने लगा।

आश्चर्यजनक रूप से उसी क्षण तीनों भाई अपनी-अपनी विकलांगता से मुक्त हो गए। जब गांव वाले वहां पहुंचे तो उन्हें कुएं के भीतर गणेश जी की मूर्ति दिखाई दी।

ग्रामीणों ने और खुदाई की, लेकिन मूर्ति का आधार नहीं मिला। इस घटना से क्षेत्र का नाम ‘कनिपकम’ पड़ा, जहां ‘कनि’ का अर्थ है आर्द्रभूमि और ‘पकम’ का अर्थ है पानी का प्रवाह। कुएं का पवित्र जल प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है, जो शारीरिक और मानसिक रोगों को ठीक करने में प्रभावी माना जाता है। आज भी यह प्रतिमा उसी जल से भरे कुएं में विराजमान है।

निरंतर बढ़ रही गणेश जी की मूर्ति

लोक मान्यता है कि मूर्ति निरंतर आकार में बढ़ रही है। इसका प्रमाण यह है कि लगभग 50 वर्ष पूर्व चढ़ाया गया चांदी का कवच अब प्रतिमा पर फिट नहीं होता। वर्तमान समय में प्रतिमा का केवल घुटना और पेट ही जल से ऊपर दिखाई देता है।

इस मंदिर का निर्माण चोल सम्राट ने करवाया

बताया जाता है कि, गणपति के इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में चोल सम्राट कुलोत्तुंग प्रथम ने कराया था। इसके बाद 1336 में विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने इसका विस्तार और जिर्णोद्धार करवाया।

नदी के किनारे बसे इस तीर्थ का नाम ‘कनिपकम’ पड़ा, जिसका अर्थ है, जल से भरा हुआ स्थान। स्थानीय लोग गणपति को जल का देवता भी कहते हैं।

पापों से मिलती है मुक्ति

लोकमान्यताओं के अनुसार, कनिपकम विनायक मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यहां दर्शन करने से पाप नष्ट हो जाते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता हैं। इस मंदिर को लेकर कई विशेष नियम भी हैं।

जो भी भक्त पापों की क्षमा चाहता है, उसे पहले पास के नदी में स्नान कर यह प्रण लेना होता है कि वह फिर से ऐसा पाप नहीं करेगा। इसके बाद जब वह गणेश जी के दर्शन करता है, तो उसके पाप खत्म हो जाते हैं।

मंदिर में होता है 21 दिनों का ब्रह्मोत्सव

मंदिर में हर साल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से शुरू होने वाला 21 दिनों का ब्रह्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान भगवान विनायक की प्रतिमा को भव्य वाहन पर शोभायात्रा के रूप में निकाला जाता है।

ये भी पढ़ें-प्रोफेशनल लाइफ में चाहिए तरक्की, तो आचार्य चाणक्य की इन नीतियों का पालन करें, सफलता कदम चूमेगी   

देशभर से हजारों श्रद्धालु इस उत्सव में शामिल होने आते हैं। कनिपकम मंदिर सड़क, रेल और हवाई मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है। निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति और रेलवे स्टेशन चित्तूर है। आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम तिरुपति और वेल्लोर से नियमित बसें संचालित करता है।

Where is lord ganesha seated in water

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Published On: Aug 19, 2025 | 06:33 PM

Topics:  

  • Andhra Pradesh
  • Lord Ganesha
  • Religion

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