मोक्षदा एकादशी व्रत से मिलती है मुक्ति (सौ.सोशल मीडिया)
Mokshada Ekadashi Kab Hai 2025: 1 दिसंबर 2025, सोमवार को मार्गशीर्ष महीने की एकादशी यानी मोक्षदा एकादशी मनाई जाएगी। हिन्दू मान्यता अनुसार, एकादशी के दिन जगत के पालनहार श्रीहरि भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही, इस दिन विशेष चीजों का दान करना भी शुभ जाता है।
अगर धर्मशास्त्रों की बात करें तो, मोक्षदा एकादशी व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। ऐसे में आइए जानते हैं मोक्षदा एकादशी व्रत करने से क्या सच में मिलती है मुक्ति और इसका महत्व।
शास्त्रों में कहा गया है कि कुरुक्षेत्र में महाभारत में जिन योद्धाओं ने युद्ध में वीरगति प्राप्त की थी, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। तभी से इस दिन का विशेष महत्व है। इस कारण इस एकादशी का महत्व और बढ़ जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से मोक्ष तो नहीं मिलता, लेकिन जीवन में कई पापों से मनुष्य को मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत का फल पुण्यकारी होता है।
मान्यता है कि, इस शुभ दिन उपवास करने से मन शुद्ध होता है। शरीर स्वस्थ रहता है और पापों का नाश होता है। कहा जाता है कि इस दिन गीता पाठ करने और श्रीकृष्ण के उपदेशों को जीवन में आत्मसात करने से मुक्ति मिलती है।
सनातन धर्म में भगवान विष्णु को समर्पित मोक्षदा एकादशी का बड़ा महत्व रखता है। शास्त्रों में मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुण्यफल की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा, उपवास और भक्ति व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं।
भक्तजन पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में जप, ध्यान और कीर्तन करते हैं। यह दिन आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति का प्रतीक माना गया है।
मोक्षदा एकादशी का व्रत शुरू करने के लिए एकादशी के आरंभ होने पर संकल्प लिया जाता है। उसके बाद श्रीहरि विष्णु के पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत पूजा की जाती है। पूजा के उपरांत गीता पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। व्रत के दौरान फलाहार किया जा सकता है।
अगले दिन द्वादशी तिथि पर निर्धारित समय में पारण किया जाता है, तभी व्रत पूर्ण माना जाता है। एकादशी से एक दिन पहले यानी दशमी से ही तामसिक भोजन से बचना चाहिए।
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मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की ग्यारस को मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा जाता है और इसी दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। इस शुभ घड़ी पर भगवान सूर्यदेव की उपासना का विशेष महत्व बताया गया है।