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आज मनाई जा रही है बैकुंठ चतुर्दशी, जानिए सनातन धर्म में इस दिन का क्यों है इतना महत्व

Vaikuntha Chaturdashi Significance:वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हर साल कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक साथ पूजा की जाती है।

  • By सीमा कुमारी
Updated On: Nov 04, 2025 | 11:44 AM

ये रहने वाला है वैकुंठ चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त (सौ.सोशल मीडिया)

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Vaikuntha Chaturdashi  kab hai 2025:आज मंगलवार, 4 नवंबर को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जा रही है। सनातन धर्म में इस चतुर्दशी का बहुत ही खास महत्व है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा का विधान है। हिंदू मान्यता के अनुसार, वैकुंठ चतुर्दशी के दिन हरि और हर की पूजा एक साथ की जाती है, जिसे विधि-विधान से करने पर साधक के सभी कष्ट महादेव हर लेते हैं तो वहीं भगवान विष्णु की कृपा से वह सुख-सौभाग्य को भोगता हुआ अंत में वैकुंठ को प्राप्त होता है। ऐसे में आइए जानते है वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और उसका धार्मिक महत्व

ये रहने वाला है वैकुंठ चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त

आपको बता दें, पंचांग के अनुसार भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा का पुण्यफल दिलाने वाली कार्तिक मास की चतुर्दशी आज 04 नवंबर को पूर्वाह्न 02:05 बजे से प्रांरभ होकर रात्रि 10:36 बजे तक रहेगी।

ऐसे में यह पर्व आज के दिन ही मनाना उचित रहेगा। आज वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा का सबसे उत्तम मुहूर्त जिसे निशिताकाल कहते हैं वह आज रात्रि को 11:39 बजे से लेकर 05 नवंबर 2025 को पूर्वाह्न 00:31 बजे तक रहेगा। इस तरह से हरिहर की विशेष पूजा के लिए साधकों को कुल 52 मिनट मिलेंगे।

कैसे करें? बैकुंठ चतुर्दशी पर पूजा

वैकुंठ चतुर्दशी पर प्रातःकाल ब्राह्म मुहूर्त में उठें। सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ, पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें, क्योंकि ये दोनों रंग सौभाग्य और ऊर्जा के प्रतीक हैं। पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करें और वहां गंगाजल का छिड़काव करें।

घर के मंदिर या पूजा स्थल में एक चौकी पर लाल या पीले वस्त्र बिछाएं। उस पर भगवान विष्णु और भगवान शिव की मूर्तियां या चित्र स्थापित करें। दीपक जलाएं, संभव हो तो घी का दीपक ही जलाएं। व्रत का संकल्प लें। उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें कमल का फूल अर्पित करें।

इसके बाद भगवान शिव की आराधना करें और उन्हें बेलपत्र, धतूरा, तथा गंगा जल चढ़ाएं. पूजा में धूप, दीप, चंदन, इत्र, गाय का दूध, केसर, दही और मिश्री का उपयोग करें।

यह सभी सामग्री शिव-विष्णु दोनों को अत्यंत प्रिय मानी गई है। अब मंत्रजप का आरंभ करें। पहले भगवान विष्णु के  मंत्र “ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।”  का कम से कम 108 बार जाप करें।

इसके बाद  का “ॐ नमः शिवाय।” जप करें। मंत्रजप के उपरांत बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा का पाठ करें। कथा के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की आरती करें।

ये भी पढ़ें-एक रोशनी घरों में, दूसरी गंगाघाटों पर, जानिए दिवाली और देव दीपावली में क्या होता है अंतर

वैकुंठ चतुर्दशी का क्या है धार्मिक महत्व

हिंदू मान्यता के अनुसार, इस पावन पर्व को लेकर यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने के बाद भगवान शिव उन्हें एक बार फिर सृष्टि का कार्य भार सौंपते हैं। यानि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन सत्ता का हस्तांतरण होता है और एक बार फिर से श्री हरि सृष्टि का संचालन कार्य दोबारा से प्रारंभ करते हैं। गौरतलब है कि पूरे चातुर्मास में यह कार्य भगवान शिव के पास रहता है।

When is vaikuntha chaturdashi

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Published On: Nov 04, 2025 | 11:44 AM

Topics:  

  • Lord Shiva
  • Lord Vishnu
  • Religion

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