योगिनी एकादशी (सौ.सोशल मीडिया)
आज योगिनी एकादशी का व्रत हैं। यह एकादशी का व्रत सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। एक साल में कुल 24 एकादशी मनाई जाती हैं। वहीं, एक महीने में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में दो एकादशी आती हैं। इस साल योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून, 2025 यानी आज रखा जा रहा है।
वहीं, आप इस व्रत का पालन कर रहे हैं, तो इसकी कथा का पाठ जरूर करें, क्योंकि इसके बिना एकादशी व्रत अधूरा माना जाता है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।
सनातन धर्म में योगिनी एकादशी व्रत कथा का बड़ा महत्व है। प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वर्ग लोक में कुबेर नाम का राजा रहता था, जो शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था। रोजाना वो शिव जी की पूजा करता था।
एक दिन उसका हेम नाम का माली था, जो उसके लिए रोज फूल-माला लाता था। माली की पत्नी का नाम विशालाक्षी था। वह बेहद सुंदर थी। एक बार जब सुबह माली मानसरोवर से फूल तोड़कर लाया।
लेकिन कामासक्त होने की वजह से वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद करने लगा। राजा को पूजा करने में देरी हो गई, जिसकी वजह से वह क्रोधित हुआ। ऐसे में राजा ने माली को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि तुमने ईश्वर की भक्ति से ज्यादा कामासक्ति को प्राथमिकता दी है, तुम्हारा स्वर्ग से पतन होगा और तुम धरती पर स्त्री वियोग और कुष्ठ रोग का सामना करोगे।
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इसके बाद वह धरती पर आ गिरा, जिसकी वजह से उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसकी स्त्री भी चली गई। वह कई वर्षों तक धरती पर कष्टों का सामना करता रहा। एक बार माली को मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए। तब उसने अपने जीवन की सभी परेशानियों को बताया। ऋषि माली को बातों को सुनकर आश्चर्य हुआ। ऐसे में मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी के व्रत के महत्व के बारे में बताया।
मार्कण्डेय ने कहा कि इस व्रत को करने से तुम्हारे जीवन के सभी पाप खत्म हो जाएंगे और तुम्हे दोबारा से स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो जाएगी। माली ने ठीक वैसा ही किया जैसा कि ऋषि ने बताया था। इसके बाद भगवान विष्णु ने उसके समस्त पापों को क्षमा करके उसे दोबारा से स्वर्ग लोक में स्थान दिया।