शरद पूर्णिमा व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Sharad Kojagiri Purnima Vrat: यूं तो पूर्णिमा तिथि का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है, लेकिन, ज्योतिषियों के अनुसार, आश्विन मास में पड़ने वाली पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा तिथियों में श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि, इसी तिथि से शरद ऋतु का आरंभ हो जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर आकाश में उदित होता है और उसकी चांदनी को अमृतमयी बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन स्नान-दान के साथ-साथ मां लक्ष्मी और मां अन्नपूर्णा की पूजा करने का विधान है। इसके अलावा विष्णु जी और चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। इस साल शरद पूर्णिमा का पर्व 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
वहीं इस दिन पूजा के समय व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है वर्ना पूजा अधूरी माना जाती है। साथ ही पूजा का फल नहीं मिलता है। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा और कोजागिरी पूर्णिमा की व्रत कथा।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं और दोनो ही विधिवत रूप से पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी बेटी की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। परेशान छोटी बेटी ने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम काफी समय से पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती हैं।
छोटी बेटी ने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत कैसे करते हैं इसकी संपूर्ण विधि जानी। पूर्णिमा का व्रत करने के बाद, उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया।
उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया।
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बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।
तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।