
पीपल की परिक्रमा का धार्मिक कारण (सौ.सोशल मीडिया)
Paush Amavasya 2025 Vrat Katha:आज साल 2025 की आखिरी अमावस्या मनाई रही है। धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से यह शुभ एवं पावन तिथि पितरों की पूजा -पाठ यानी तर्पण आदि के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह दिन पूर्वजों की पूजा के लिए बहुत ही शुभ एवं पुण्यदाई होता है।
वहीं, ज्योतिष शास्त्र में, इस शुभ तिथि पर पितरों का तर्पण, पूजा के अलावा पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने की भी एक विशेष परंपरा होती है, जिसके बिना इस दिन का अनुष्ठान अधूरा माना जाता है, तो चलिए यहां पर जानते हैं कि इसके पीछे का कारण क्या है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों देवों का वास होता है। पौष अमावस्या के दिन पीपल की परिक्रमा करने और शाम को उसके नीचे घी का दीपक जलाने की परंपरा है। साथ ही पितरों का स्मरण और गाय को रोटी-गुड़ खिलाना भी शुभ माना जाता है।
धार्मिक परंपराओं में कहा जाता है कि कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता, जब तक उससे जुड़ी कथा न सुनी या पढ़ी जाए। पौष अमावस्या पर भी व्रत के साथ कथा का पाठ करने की परंपरा है, ताकि व्रत का फल पूरी तरह प्राप्त हो सके।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मण की बेटी गुणवान होने के बावजूद विवाह की परेशानियों से जूझ रही थी। एक दिन एक साधु उनके घर आए। ब्राह्मण ने उनकी सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर साधु ने कन्या के विवाह का उपाय बताया। साधु के कहने पर कन्या रोज एक परिवार के घर जाकर सफाई करने लगी। उसकी निस्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर उस घर की महिला ने उसे आशीर्वाद दिया।
कुछ दिनों बाद उस घर की महिला को सच्चाई पता चली और वह कन्या की सेवा भावना से खुश हो गई। उसने कन्या को विवाह का आशीर्वाद दिया। लेकिन उसी समय उस महिला के पति की मृत्यु हो गई।
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दुखी महिला ने अपने आंगन के पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा की और भगवान विष्णु से प्रार्थना की। संयोग से वह दिन पौष अमावस्या का ही था। मान्यता है कि भगवान की कृपा से उसका पति पुनर्जीवित हो गया और कन्या का विवाह भी संपन्न हुआ। तभी से इस व्रत कथा को अत्यंत फलदायी माना जाता है।






