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अखंड सौभाग्य और मनचाहा वर पाने के लिये रखा जाता है कोकिला व्रत, जानें इससे जुड़ी मां सती की कथा

कोकिला व्रत भगवान शिव एवं मां पार्वती को समर्पित होता है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं और अविवाहित लड़कियां करती हैं। धार्मिक मत है कि‘कोकिला व्रत’करने से विवाहित महिलाओं के सौभाग्य में वृद्धि होती है तथा शिव की कृपा से अविवाहित लड़कियों के शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।

  • By रीना पंवार
Updated On: Jul 20, 2024 | 12:05 AM

(सौजन्य सोशल मीडिया)

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हिंदू धर्म में आषाढ़ महीने की पूर्णिमा का बड़ा महत्व है। इस दिन गुरु पूर्णिमा भी मनाई जाती है तथा मां लक्ष्मी और जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ ‘कोकिला व्रत’ (Kokila Vrat 2024) भी रखा जाता है। इस साल ‘कोकिला व्रत’ 20 जुलाई 2024 को पड़ रहा है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधिविधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि यह व्रत करे से अविवाहित लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है तथा शादीशुदा महिलाओं सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

कोकिला व्रत भगवान शिव एवं मां पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती के निमित्त व्रत रखा जाता है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं और अविवाहित लड़कियां करती हैं। धार्मिक मत है कि‘कोकिला व्रत’करने से विवाहित महिलाओं के सौभाग्य में वृद्धि होती है तथा शिव की कृपा से अविवाहित लड़कियों के शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। तो आइए जानें कोकिला व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि और कथा के बारे में –

शुभ मुहूर्त

कोकिला व्रत आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि के दिन रखा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा 20 जुलाई को शाम 5 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी, जो 21 जुलाई को दोपहर 3 बजकर 46 मिनट पर खत्म होगी। इसके लिए 20 जुलाई को ही कोकिला व्रत रखा जाएगा। व्रती 20 जुलाई को कोकिला व्रत कर सकते हैं। इस व्रत का पूजन शाम के समय किया जाता है। इस दिन पूजन के लिये शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 19 मिनट से 9 बजकर 22 मिनट तक है। वहीं, आषाढ़ पूर्णिमा 21 जुलाई को है।

रवि योग

कोकिला व्रत के दिन रवि योग दिन भर रहेगा। वहीं, भद्रावास संध्याकाल से है। ज्योतिषियों की मानें तो रवि योग 20 जुलाई को भारतीय समय अनुसार 5 बजकर 36 मिनट से शुरू होगा। वहीं, इसका समापन 21 जुलाई को देर रात 1 बजकर 49 मिनट पर होगा। इस दिन नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा है।

कोकिला व्रत की पूजा-विधि

पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद मंदिर जाकर भगवान शिव का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें। विधि-विधान से भांग, धतूरा, बेलपत्र, फल अर्पण कर शिवजी और सती माता का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।

पूजा के दौरान भगवान शिव को सफेद फूल और माता सती को लाल रंग के फूल चढ़ाएं। इसके बाद धूप और घी का दीपक जलाकर आरती करें और कथा पढ़ें। व्रत के दौरान दिनभर कुछ भी न खाएं, शाम के समय पूजा और आरती करने के बाद फलाहार कर सकते हैं। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जा सकता है। इस तरह पूजा करने से भगवान शिव और माता सती का आशीर्वाद प्राप्त होता है और दांपत्य जीवन सुखी रहता है।

कोकिला व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किए जाने के बाद आत्मदाह कर लिया था। भगवान शिव को जब माता सती के आत्मदाह का पता चला तो उन्होंने मां सती को श्राप दिया कि जैसे आपने मेरी इच्छाओं के खिलाफ जाकर आहुति दी वैसे ही आपको भी मेरे वियोग में रहना पड़ेगा। भगवान शिव ने सती को 10 हजार साल तक कोयल बनकर जंगलों में रहने का शाप दिया। इस शाप के बाद मां सती कोयल बनकर 10 हजार साल तक वन में रही और भगवान शिव की आराधना की। बाद में उन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर देवी पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और कठोर तप के बाव शिव को पति के रूप में पाया। इसी कारण कोकिला व्रत, देवी सती और भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू व्रत है। ‘कोकिला’ शब्द भारतीय पक्षी कोयल को दर्शाता है, जो देवी सती के साथ प्रतीकात्मक रूप से जुड़ा हुआ है।

लेखिका-सीमा कुमारी

Importance and method of worship of kokila vrat

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Published On: Jul 20, 2024 | 12:05 AM

Topics:  

  • Lord Shiva

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