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गृहस्थ में मोक्ष संभव है तो आपने सन्यास जीवन को क्यों अपनाया ? प्रेमानंद जी महाराज का गूढ़ उत्तर

Premanand Ji Maharaj Path of Moksha: यह प्रश्न अक्सर लोगों के मन में उठता है कि जब गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी मोक्ष संभव है, तो फिर कोई सन्यास का मार्ग क्यों अपनाता है।

  • By सिमरन सिंह
Updated On: Dec 22, 2025 | 06:34 PM

Premanand Ji Maharaj (Source. Pinterest)

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Grihasth aur Sanyasi Jeevan mein moksh kee praapti: यह प्रश्न अक्सर लोगों के मन में उठता है कि जब गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी मोक्ष संभव है, तो फिर कोई सन्यास का मार्ग क्यों अपनाता है। इस जिज्ञासा का उत्तर प्रेमानंद जी महाराज ने अत्यंत सरल, लेकिन गहरे आध्यात्मिक भाव के साथ दिया है। उनका कहना है कि ईश्वर ने यह सृष्टि एकरूप नहीं, बल्कि विविध स्वभाव और प्रवृत्तियों से भरी बनाई है। इसी विविधता को समाहित करने के लिए प्रभु ने जीवन के दो प्रमुख मार्ग बनाए निवृत्ति मार्ग और प्रवृत्ति मार्ग।

निवृत्ति मार्ग: केवल स्वयं के लिए नहीं, समष्टि के लिए

सन्यास या निवृत्ति मार्ग केवल व्यक्तिगत मोक्ष तक सीमित नहीं है। प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि एक सच्चा विरक्त, जो पूरी तरह भगवान में स्थित हो जाता है, वह केवल स्वयं का नहीं, बल्कि असंख्य लोगों का कल्याण कर सकता है। सन्यासी जीवन में सांसारिक जिम्मेदारियां नहीं होतीं न परिवार का पालन, न व्यवसाय, न नौकरी। उनका एकमात्र कार्य होता है “नाम जप” और निरंतर भगवान का स्मरण। यह मार्ग त्याग, तप और पूर्ण समर्पण का है। प्रभु ने इस मार्ग की रचना इसलिए की ताकि कुछ लोग अपना पूरा मानसिक और आध्यात्मिक बल ईश्वर को अर्पित कर सकें और गुरु मार्ग के रूप में समाज का मार्गदर्शन कर सकें।

प्रवृत्ति मार्ग: गृहस्थ का कठिन लेकिन महान संघर्ष

गृहस्थ जीवन अपने आप में एक बड़ी साधना है। घर-परिवार, जिम्मेदारियां, आर्थिक दबाव और सामाजिक रिश्तों के बीच भजन-स्मरण के लिए समय निकालना आसान नहीं होता। पूजा में बैठते ही मन कभी कामों में, कभी चिंताओं में उलझ जाता है। इसी संदर्भ में देवर्षि नारद और घी से भरे पात्र की कथा का उल्लेख आता है। प्रभु ने नारद जी से कहा कि सिंहासन की परिक्रमा करते हुए पात्र से एक बूंद भी न गिरे। नारद जी पूरे ध्यान से पात्र को संभालते रहे और प्रभु का नाम तक न ले सके। तब भगवान ने समझाया कि जो गृहस्थ इतनी जिम्मेदारियों के बीच भी ईश्वर को स्मरण करता है, वह अत्यंत श्रेष्ठ भक्त है।

ये भी पढ़े: रावण के वध से पहले क्यों भगवान श्रीराम ने चलाए थे 32 बाण? जानिए इसके पीछे की धार्मिक मान्यता

दोनों मार्गों का पवित्र संतुलन

निवृत्ति और प्रवृत्ति मार्ग एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। गृहस्थ संतों की सेवा, दान और सहायता करता है, जिससे सन्यासी जीवन चलता है। वहीं सन्यासियों के तपोबल का आशीर्वाद गृहस्थ को भी प्राप्त होता है। ईश्वर जिसने जहां रखा है, वहीं रहकर यदि श्रद्धा, ईमानदारी और भक्ति से जीवन जिया जाए, तो दोनों मार्ग अंततः उसी परम लक्ष्य मोक्ष की ओर ले जाते हैं।

एक सुंदर उपमा से समझिए

आध्यात्मिक यात्रा एक महासागर के समान है। सन्यासी प्रकाशस्तंभ की तरह है स्वयं स्थिर रहकर दूसरों को मार्ग दिखाने वाला। गृहस्थ एक मजबूत जहाज की तरह है, जो अनेक यात्रियों को लेकर संसार की लहरों से गुजरता है। यदि दिशा ईश्वर की ओर हो, तो मंज़िल अवश्य मिलती है।

If liberation is possible in married life then why did you adopt the life of a renunciate a answer from premanand ji maharaj

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Published On: Dec 22, 2025 | 06:34 PM

Topics:  

  • Premanand Maharaj
  • Religion
  • Sanatan Culture
  • Sanatan Hindu religion

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