Krishna ने किया था इन लोगों को जिंदा। (सौ. Pinterest)
Krishna’s Mahabharata Stories: सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को लीला पुरुषोत्तम कहा गया है। उनके अनेक निर्णय ऐसे रहे हैं, जो पहली नजर में काल और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध प्रतीत होते हैं, लेकिन हर घटना के पीछे एक गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य छिपा है। शास्त्रों के अनुसार, एक बार मृत्यु प्राप्त होने के बाद किसी भी जीव का पुनः जीवन में लौटना संभव नहीं माना जाता, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपने समय में न केवल अश्वत्थामा को अमरता का श्राप दिया, बल्कि 9 लोगों को मृत्यु के बाद भी जीवनदान दिया। आइए जानते हैं वे कौन थे और इसके पीछे क्या कारण था।
भगवान श्रीकृष्ण जब उज्जैन में सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब गुरु दक्षिणा का समय आया। उनके गुरु ने अपने पुत्र को वापस लाने की इच्छा जताई, जिसे एक असुर उठा ले गया था। श्रीकृष्ण ने गुरु को वचन दिया “मैं आपके पुत्र को जीवित वापस लाऊंगा।” खोज के दौरान पता चला कि गुरु पुत्र यमलोक पहुंच चुका है। अपने वचन की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण यमलोक गए और उसे वहां से जीवित वापस ले आए।
कंस द्वारा मारे गए माता देवकी के छह पुत्रों को भी श्रीकृष्ण ने जीवनदान दिया था। उन्होंने देवकी और वासुदेव को उनके मृत पुत्रों से पुनः मिलवाया। यह घटना मातृत्व, करुणा और धर्म की सर्वोच्च मिसाल मानी जाती है।
अश्वमेघ यज्ञ के दौरान अर्जुन यज्ञ का घोड़ा लेकर मणिपुर पहुंचे, जहां उनका युद्ध मणिपुर नरेश वभ्रुवाहन से हुआ। इस युद्ध में अर्जुन वीरगति को प्राप्त हो गए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन की पत्नी उलूपी की नागमणि की सहायता से उसे पुनः जीवित किया।
महाभारत युद्ध के समय उत्तरा गर्भवती थीं और उनके गर्भ में अभिमन्यु का पुत्र पल रहा था। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चलाकर पांडव वंश को समाप्त करने का प्रयास किया। लेकिन श्रीकृष्ण ने गर्भ में पल रहे बालक की रक्षा की और उसे जीवनदान दिया। आगे चलकर यही बालक राजा परीक्षित कहलाया।
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भीम पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की गर्दन कट जाने के बाद भी श्रीकृष्ण ने उसे महाभारत युद्ध की समाप्ति तक जीवित रखा। आज वही बर्बरीक खाटू श्याम बाबा के नाम से पूजे जाते हैं।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण के लिए नियम से अधिक धर्म, करुणा और वचन की रक्षा महत्वपूर्ण थी। उनके ये चमत्कार नहीं, बल्कि धर्म के गहरे सिद्धांतों का प्रतीक हैं।