झालावाड़ में गिरी स्कूल बिल्डिंग (सोर्स- सोशल मीडिया)
Jhalawar School Building Collapse: राजस्थान के झालावाड़ जिले में हुए सरकारी स्कूल हादसे ने पूरी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। इस बीच चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है कि पूरे राज्य में 900 से ज़्यादा स्कूल इस समय जर्जर हालत में हैं।
सरकार पिछले दो सालों में मरम्मत पर 1500 करोड़ से ज़्यादा खर्च कर चुकी है, लेकिन पिपलोदी गाँव के जिस सरकारी स्कूल की छत गिरी, वह उन स्कूलों की सूची में भी नहीं था जिन्हें बड़ी मरम्मत की ज़रूरत थी। जिसका परिणाम 7 मासूम मौतों के रूप में सामने आया।
राजस्थान में साल में दो बार जर्जर स्कूलों का सर्वेक्षण किया जाता है। पता चला है कि इसी साल मार्च में भी एक सर्वेक्षण किया गया था। उस सर्वेक्षण में पता चला था कि 157 ऐसे स्कूल हैं जिनका कोई उपयोग नहीं हो सकता। लगभग 2000 स्कूलों को बड़ी मरम्मत की ज़रूरत थी। मुख्यमंत्री से इनकी मरम्मत की घोषणा भी करवाई गई। बजट भी पारित किया गया।
वर्ष 2025-26 के लिए 500 करोड़ रुपये की राशि प्रस्तावित की गई है। लेकिन इस हादसे ने पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी है। यह हादसा इस बात का गवाह है कि कैसे मानसून से पहले अलर्ट के बावजूद जर्जर इमारतों में बच्चों को पढ़ाकर उनकी जान जोखिम में डाली जा रही थी।
जानकारी मिली है कि झालावाड़ जिले में 14 स्कूल जर्जर हालत में पाए गए। झालावाड़ के मनोहरथाना के पिपलोदी गांव स्थित उस स्कूल की मरम्मत के लिए 2023 में एक लाख रुपये स्वीकृत किए गए थे, जिसकी छत गिर गई है। स्कूल के सर्वेक्षण में पता चला कि पूरे स्कूल में केवल दो कमरे थे, जिनकी हालत खराब थी।
ग्राम पंचायत के सहयोग से छत की मरम्मत करवाई गई। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ने इसका निरीक्षण कर पास कर दिया था। लेकिन अब यह बात सामने आई है कि छत की मरम्मत तो कर दी गई, लेकिन नीचे की ज़मीन की हालत पर ध्यान नहीं दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि ज़मीन धंस गई और उसके साथ दीवारें और छत भी ढह गईं।
राज्य शिक्षा निदेशालय बीकानेर ने सभी ज़िलों को जर्जर स्कूल भवनों की रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे ताकि समय पर मरम्मत की जा सके, लेकिन हादसे से साफ़ है कि न तो रिपोर्ट तैयार की गई और न ही किसी ने स्कूल का निरीक्षण किया। घायल बच्चों ने बताया कि हादसे से पहले शिक्षकों को छत से गिर रहे कंकड़ और दरारों के बारे में बताया गया था, लेकिन समय पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
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प्रारंभिक जांच में पता चला है कि बच्चे और अभिभावक लगातार जर्जर कमरों की शिकायत कर रहे थे। दीवारों में सीलन और बारिश के कारण प्लास्टर गिरने की भी शिकायतें थीं। हादसे से कुछ मिनट पहले भी छात्रों ने शिकायत की थी। शिक्षा सचिव कृष्ण कुणाल ने भी माना है कि यह स्कूल जर्जर इमारतों वाले स्कूलों की सूची में शामिल नहीं था।