असम में 15 जनवरी को माघ बिहू बड़े ही खास ढंग से मनाया जाता है। बंगाली पंजिका के अनुसार बिहू पर्व माघ मास की तिथि पर मनता है। इस खास त्योहार के मौके पर आप इस त्योहार से जुड़ी खास बातों और परंपराओं के बारे में जान सकते है।
माघ बिहू की जान लीजिए खास बातें (सौ.सोशल मीडिया)
Magh Bihu 2025: देश के हर हिस्से में अनोखी परंपराओं वाली झलक नजर आती है यानि त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते है। असम में 15 जनवरी को माघ बिहू बड़े ही खास ढंग से मनाया जाता है। बंगाली पंजिका के अनुसार बिहू पर्व माघ मास की तिथि पर मनता है। इस खास त्योहार के मौके पर आप इस त्योहार से जुड़ी खास बातों और परंपराओं के बारे में जान सकते है।
यहां पर माना जाता है कि, बिहू की उत्पत्ति 'बिशु' शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है शांति की तलाश करना। त्योहार समुदाय के साथ भोजन साझा करने के बारे में है, क्योंकि 'भोग' शब्द का अर्थ है खाना। इस खास दिन पर अग्नि के देवता अग्निदेव को समर्पित है और लोग भगवान अग्नि देवता से प्रार्थना करते हैं। इस दिन सूर्य पूजा करने का विधान होता है असम में इसे भोगली बिहू और मगहर दोमाही के रूप में मनाया जाता है।
खेलों में लेते हैं भाग लोग - माघ बिहू की एक परंपरा यह है कि, इस दिन को खेल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस खास दिन पर भैंस की लड़ाई, मुर्गे की लड़ाई और बुलबुल की लड़ाई में भाग लेते हैं और इसका पूरा आनंद लेते हैं। यह सभी असमिया लोग मनाते हैं।
झोपड़ी बनाकर जला देते है - यहां माघ बिहू के मौके पर परंपरा के अनुसार, पहले दिन परिवार के युवा सदस्य बांस से एक झोपड़ी बनाते हैं और नदी के पास झोपड़ी छोड़ देते हैं और महिलाएं विशेष भोजन बनाती हैं और पूरा परिवार उस झोपड़ी में भोजन का आनंद लेता है। यहां पर त्योहार का सेलिब्रेशन और बिहू गीत और संगीत बजाने के बाद झोपड़ी को जला दिया जाता है। इसमें कोई वास ना कर सकें।
मेजी जलाने का अर्थ- इस खास माघ बिहू के मौके पर लोग मेजी जलाकर लोग चावल, दालें, घी और पीठा को सूर्य की आराधना हेतु अग्नि में अर्पित किया जाता है। मेजी का जलना अंधकार पर प्रकाश की और मृत्यु पर जीवन की विजय का प्रतीक है। असम के कुछ जातीय समुदाय जैसे सोनोवाल, कछारी, दिमासा और राभा, मेजी के जलने को पूर्वजों की पूजा से जोड़ते हैं। माना जाता है कि इच्छाधारी मृत्यु का वरदान पाकर भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण में पारगमन के बाद ही अपने नश्वर शरीर को त्यागने का निर्णय लिया था। जैसे-जैसे लपटें मेजी को घेरती हैं, वैसे-वैसे लोग यह कहना शुरू कर देते हैं, 'पूह गोल माघ होल, अमर मेजी जोली गोल।'