सर्दियों का मौसम जहां पर फिजा में ठंडक घोल देता है वहीं पर इस मौसम में खानपान के साथ पहनावे पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है। इस सीजन में स्वेटर, कोट, मफरल और शॉल का उपयोग सर्दियों में किया जाता है। अगर आप इस सर्दी में शॉल पहनते हैं तो यहां पर हम आपके लिए खास तरह की डिजाइन लेकर आए है जो आपके ठंड में आपके फैशन को बढ़ा देगी।
कश्मीरी शॉल- यह शॉल भारत की सबसे फेमस शॉल है जो कश्मीर की सबसे खास मानी जाती है। हाई क्वालिटी वाली ऊन का इसमें इस्तेमाल करते हैं औऱ बुनाई हाथ से की जाती है और इन्हें परंपरागत कढ़ाई से सजाया जाता है, जिसे “राखी” या “जामवार” कहा जाता है. ये शॉल मुलायम और गर्म होती है।
पश्मीना शॉल- सर्दियों में खास तरह की शॉल में पेशवई शॉल भी पहनी जाती है यह भी कश्मीर से संबंध रखती है। ये बहुत ही मुलायम और हल्की होती है. इस शॉल को बनाने के लिए लद्दाख की चान्ग्रा बकरी और पूर्वी हिमालय की चेंगू बकरी के ऊन का इस्तेमाल किया जाता है। मुलायम होने के साथ महंगी होती है।
ढाबला शॉल- इस शॉल को अधिकतर गुजरात में पहना जाता है। सफेद या काले रंग का होता है और इसमें एंब्रॉयडरी होती है. ये अपनी ब्लॉक प्रिंटिंग और नेचुरल डाईज को लेकर काफी प्रसिद्ध है और ये शॉल महंगी होती है।
नागा शॉल- नाम से प्रसिद्ध नागालैंड की शॉल फैशन के मामले में अलग स्थान रखती है। इस शॉल को बनाने के लिए मैट और चिकनी दो तरह की ऊन का उपयोग किया जाता है. मैट ऊप कठोर ऊन होती है, जो आसानी से उपलब्ध होती है। ये शॉल काफी गर्माहट प्रदान करती है और इसकी कीमत 20 से 50 हजार तक होती है।
वेलवेट शॉल- सर्दियों के मौसम में शादी या किसी फंक्शन में पहन कर जाने के लिए ये शॉल एकदम परफेक्ट रहती है।खासियत इसकी नर्म और मुलायम सतह है, जो इसे पहनने में बहुत आरामदायक बनाती है। वेलवेट शॉल का डिजाइन भी काफी आकर्षक होता है. इसे सूट, साड़ी और लहंगे के साथ भी स्टाइल किया जाता है।
कुल्लू शॉल- हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले से एक प्रसिद्ध हस्तशिल्प यह शॉल है।कुल्लू शॉल की विशेषता उसकी मुलायमियत, बनावट और आकर्षक डिजाइनों में है यह शॉल पारंपरिक रूप से हाथ से बुने जाते थे और स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार किए जाते थे। इसके अलावा काफी मुलायम और गर्म रहती है।
कलमकारी शॉल- भारतीय कढ़ाई कला वाली शॉल फैशन के मामले में आगे है। कलमकारी शॉल हाथ से बनाए गए सूती कपड़े पर रंगी ब्लॉक से छाप बनाकर तैयार की जाती है. यह शॉल विशेष रूप से हैदराबाद और दक्षिण भारत के कुछ अन्य हिस्सों में बनाई जाती है। “कलमकारी” शब्द का अर्थ होता है “कलम से किया गया काम। मुलायम और गर्म होती है।