ओडिशा के पुरी जिले में स्थित प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ मंदिर से भव्य रथयात्रा की शुरुआत हो गई है। रथयात्रा में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे है। रथयात्रा केवल पुरी ही नहीं दुनिया में भी मशहूर है। इसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा इस दिन अपने रथों पर सवार होकर अपने मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर के लिए रवाना होते हैं।
पुरी का रथयात्रा महोत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि आस्था, परंपरा और संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व होता है। इसकी धूम दुनियाभर में छाई रहती है।
रथयात्रा के दौरान पुरी की गलियों से जब ये तीनों रंग-बिरंगे विशाल रथ निकलते हैं तो ऐसा लगता है समस्त सृष्टि धरती पर उतर आई है।ढोल-नगाड़ों की आवाज़, मंत्रों की गूंज और जय जगन्नाथ के नारों से पूरा शहर गूंज उठता है. लोग घंटों पहले से लाइन लगाकर खड़े रहते हैं ताकि रथ को छू सकें या रस्सी खींच सकें।
रथयात्रा के दौरान रथ खींचना बहुत ही पुण्य का काम होता है और इससे सारे पाप मिट जाते हैं. यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सामाजिक रूप से भी बहुत अहम होता है। इसमें केवल हिंदू ही नहीं सभी धर्म के लोग शामिल होते है।
रथयात्रा के दौरान भगवान के तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं जिसमें तीनों रथों के नाम हैं- नंदिघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र), और दर्पदलन (सुभद्रा) है। एक बार यात्रा होने के बाद अगली बार नए साल की यात्रा के लिए नए रथ तैयार किए जाते है। इन्हें बनाने का काम मंदिर से जुड़े पारंपरिक कारीगर करते हैं।
रथ यात्रा के दौरान पूरे पुरी शहर को सजाया जाता है. जगह-जगह रंगोली, फूलों की सजावट, भजन मंडलियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. ओडिशा की पारंपरिक नृत्य शैलियों जैसे ओडिसी और गोतीपुआ का प्रदर्शन होता है।
रथ यात्रा के साथ-साथ सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. लाखों लोगों की भीड़ को संभालने के लिए पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाएं पूरी तरह तैयार रहती हैं. सीसीटीवी, मेडिकल कैंप और पानी की व्यवस्था हर जगह होती है।