वसंतराव नाइक (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Vasantrao Naik Death Anniversary: आज का दिन महाराष्ट्र की राजनीति के उस कदावर नेता को याद करने का है, जिसने अपने जीवन को पूरी तरह से जनता के लिए समर्पित कर दिया था। वसंतराव फुलसिंग नाइक – एक ऐसा नाम, जिसे लोग न केवल एक मुख्यमंत्री के तौर पर याद करते हैं, बल्कि एक किसान के बेटे और जनसेवक के रूप में भी जानते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो इस बात का एहसास होता है कि कैसे उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति को स्थिरता और विकास की नई पहचान दी।
वसंतराव नाइक 3 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और 12 साल तक लगातार इस पद पर बने रहकर लोगों के हित में कार्य किए। इन आंकड़ों से ही साफ झलकता है कि जनता और पार्टी को उन पर अटूट भरोसा था। उन्होंने दिखाया कि राजनीति केवल कुर्सी पाने का साधन नहीं, बल्कि लोगों की उम्मीदों को पूरा करने का माध्यम है।
वसंतराव नाइक यवतमाल के एक छोटे-से गांव से आते है। उनका जन्म 1 जुलाई 1913 को पुसद के पास गहुली नामक एक छोटे से गांव में एक समृद्ध किसान के परिवार में हुआ था। नाइक ने 1952 से 1957 तक मध्य प्रदेश, 1957 से 1960 तक द्विभाषी बॉम्बे राज्य और 1960 से 1977 तक महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। 1952 में ही उन्हें मध्य प्रदेश सरकार में राजस्व उप मंत्री नियुक्त किया गया। 1957 में उन्हें सहकारिता मंत्री और बाद में बॉम्बे राज्य सरकार में उन्हें कृषि मंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई।
मुख्यमंत्री बनने से पहले उन्होंने 1960 से 1963 तक, राजस्व मंत्री बनकर लोगों का विश्वास जीता। इसके बाद जब मारोतराव कन्नमवार का निधन हुआ तब वसंतराव नाइक को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। 1963 से 1975 के लंबे समय तक उन्होंने इस पद पर मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने महाराष्ट्र का औद्योगीकरण काफी हद तक आगे बढ़ाया। वे 1977 में वाशिम से छठी लोकसभा के लिए भी चुने गए।
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उनकी खासियत यह थी कि हर बार जब वे मुख्यमंत्री बने, उन्होंने प्राथमिकताएं बदलीं। पहली बार में शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया, दूसरी बार सिंचाई और ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाया और तीसरी बार किसानों की आत्मनिर्भरता और पानी की समस्या को सुलझाने में पूरी ताकत झोंक दी। उनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं थी, बल्कि सेवा का ज़रिया थी।
शायद यही वजह है कि लोग उन्हें ‘हरित क्रांति का जनक’ कहते हैं। खेत-खलिहान की खुशहाली के बिना महाराष्ट्र का भविष्य अधूरा है – यह सोच नाइक की हर योजना के केंद्र में रही। उन्होंने नहरें बनवाईं, बांधों का निर्माण करवाया और किसानों के लिए नई कृषि तकनीकें लाईं। यही वजह थी कि गांव-गांव तक उनका नाम सम्मान से लिया जाता था।