बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ
नागपुर. महादेव लैंड डेवलपर्स को लेकर हाई कोर्ट में दायर कंपनी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आयकर विभाग द्वारा हलफनामा दायर किया गया जिसमें महादेव लैंड डेवलपर्स के पूर्व निदेशक प्रमोद अग्रवाल की निजी सम्पत्ति का ब्योरा प्रस्तुत किया गया। इस संदर्भ में जवाब तैयार होने तथा शीघ्र प्रभाव से दायर करने की जानकारी विभाग ने दी किंतु सुनवाई के दौरान कोर्ट की ओर से पूछे जाने पर अग्रवाल के वकील ने कहा कि वर्ष 2008 में कंपनी अवसायन में आ गई, जबकि सम्पत्तियों की खरीदी को लेकर पूछे जाने पर समय देने की गुहार लगाई गई। इसके बाद कोर्ट ने 2 सप्ताह में पूरा ब्योरा देने के आदेश अग्रवाल के वकील को दिए।
सुनवाई के दौरान सहायक सरकारी वकील की ओर से भी हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का पालन करने के लिए समय देने की मांग की गई। हाई कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेटों को कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 456 के अनुसार कदम उठाने के आदेश दिए थे। अब सरकारी वकील को 2 सप्ताह का समय दिया गया।
सुनवाई के दौरान अवसायक (लिक्वीडेटर) की ओर से बताया गया कि सम्पत्तियों का सीमांकन करने के लिए संबंधित जिला मजिस्ट्रेटों को एक पत्र लिखा गया है जिस पर आश्चर्य जताते हुए कोर्ट ने कहा कि आधिकारिक अवसायक अब सम्पत्तियों और भूखंडों का सीमांकन करने की मांग कर रहा है जिससे सवाल यह उठता है कि इन सम्पत्तियों को पहले कैसे नीलाम कर दिया गया, जबकि अवसायक स्वयं सम्पत्तियों के सीमांकन के संदर्भ में स्पष्ट नहीं था। कोर्ट ने कंपनी अधिनियंम की धारा 457 की उपधारा (2इ) का हवाला देते हुए कहा कि इसमें प्रावधान है कि आधिकारिक अवसायक उन सम्पत्तियों के निरीक्षण की अनुमति देगा जिनके संबंध में बोलियां आमंत्रित की गई थीं। सम्पत्ति का निरीक्षण केवल तभी किया जा सकता है कि जब सम्पत्तियों और भूखंडों का सीमांकन किया गया हो।
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कोर्ट ने आदेश में कहा कि आधिकारिक अवसायक को सम्पत्तियों की नीलामी करते समय सावधान रहना चाहिए। आश्चर्यजनक यह भी है कि सम्पत्तियों के विवरण की जानकारी जिला मजिस्ट्रेटों को नहीं दिए जाने का खुलासा स्वयं अवसायक ने किया। अवसायक की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि आधिकारिक अवसायक द्वारा जिला मजिस्ट्रेटों के साथ पत्राचार करने में निरर्थक अभ्यास किया जा रहा है, इसीलिए आधिकारिक अवसायक को सम्पत्तियों का ब्योरा प्रस्तुत करना चाहिए। इसके बाद जिला मजिस्ट्रेटों से उनका सीमांकन करने का अनुरोध करना चाहिए। वह इन विवरणों को एकत्र करने के लिए कंपनी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का सहारा ले सकती है। सुनवाई के दौरान प्रमोद अग्रवाल भी कोर्ट में उपस्थित था।
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