सर्जा-राजा की जोड़ी (फाइल फोटो)
Wardha News: बैल पोला किसानों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन उनके सच्चे साथी सर्जा और राजा (बैलजोड़ियों) की खुशी का दिन होता है। किसान इस दिन अपने बैलों को दुलारते हैं, सजाते हैं और उनका आदर करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक तंगी और विविध संकटों के कारण किसान अपनी बैलजोड़ियों का खर्च उठाने में असमर्थ हो रहे हैं।
इसका परिणाम यह हुआ है कि जिले में बैल जोड़ियों की संख्या धीरे-धीरे घटती जा रही है। वर्ष 2022 में जिले में लगभग 30 हजार बैल जोड़ियां थीं। यह संख्या 2023 में घटकर करीब 28,500 हो गई, और 2024 में और भी गिरकर 27 हजार 800 पर आ गई। जबकि इस वर्ष अब लगभग यह संख्या 26 हजार 500 रह गई है।
देखा जाए तो हर साल पांच सौ से आठसौ बैल जोड़ियां कम होती जा रही हैं। जिला परिषद के पशुसंवर्धन विभाग के अनुसार, जिले में गोवंशीय मवेशियों की कुल संख्या लगभग 2 लाख 75 हजार हैं, जिसमें से नर मवेशियों की संख्या लगभग 1 लाख है। इसमें बैल, छोटे बछड़े और सांड शामिल हैं।
बता दें, कि बैल किसानों के सच्चे साथी होते हैं। वे साल भर खेतों में मेहनत करते हैं। पोला का उत्सव विशेष रूप से इन्हीं बैलों को समर्पित होता है। इस दिन किसान बैलों से कोई काम नहीं करवाते, बल्कि एक दिन पहले उन्हें नदी में स्नान कराते हैं और फिर बाज़ार से नई रस्सियां, बोरका, माला, कांच की बठाटी, सिकगौड़ी, घुंघरू, पैजण, एसन, गले में डालने का गेठा-माठा, चौरे, झूल आदि सामग्री खरीदकर उन्हें सजाते हैं। भले ही किसान कितने भी आर्थिक संकट में हों, लेकिन वे अपने लाडले सर्जा-राजा को सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पोला का विशेष महत्व होता है।
करीब 25 वर्ष पहले खेतीबाड़ी के लगभग हर काम में बैलों की मदद ली जाती थी। लेकिन आधुनिक तकनीकों और मशीनों के आगमन के कारण बैलों का उपयोग कम होता गया। खेत तैयार करने से लेकर फसल निकालने तक अब मशीनों पर निर्भरता बढ़ गई है। इसके चलते किसानों ने बैल जोड़ियां बेचना शुरू कर दिया है।
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हर साल प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलें खराब हो रही हैं। आर्थिक संकट गहराने से बैल जोड़ियों का खर्च उठाना भी मुश्किल होता जा रहा है, जिससे किसान बैल बेचने को मजबूर हो रहे हैं। बीते कुछ वर्षों में जिले में बैल जोड़ियों की संख्या तेजी से घट रही है। किसानों के इस सच्चे मित्र बैल की घटती संख्या पशुप्रेमियों के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। यदि यह प्रवृत्ति ऐसे ही जारी रही, तो एक दिन बैल केवल किताबों और तस्वीरों तक सीमित न रह जाएं, यह डर है।