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Assault Accused Acquitted: ठाणे की एक अदालत ने 2021 में एक नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ के आरोपी एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले में कई खामियों को उजागर किया है, जिनमें पीड़िता की आयु साबित करने में विफलता और सहायक साक्ष्यों की कमी शामिल है।
विशेष न्यायाधीश रूबी यू मालवंकर ने 12 सितंबर को अपने आदेश में आकाश संतोष कोल्हे (32) को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (छेड़छाड़) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराधों का दोषी नहीं पाया। फैसले की प्रति बुधवार को प्राप्त हुई। यह मामला 17 दिसंबर 2021 को दर्ज किया गया था।
प्राथमिकी के अनुसार, पीड़िता, जो उस समय 17 वर्ष की थी, अपनी छोटी बहन के साथ शौचालय का उपयोग करने के लिए बस स्टॉप के पास एक खुली जगह पर गई थी। बाद में उसकी छोटी बहन अकेली वापस आई और अपनी मां को बताया कि आरोपी ने पीड़िता के पीछे से आकर उसे घसीटा और छेड़छाड़ की। परिवार ने बाद में पुलिस से संपर्क किया और प्राथमिकी दर्ज कराई। न्यायाधीश मालवंकर ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में कई बड़ी कमियों को रेखांकित किया।
पॉक्सो अधिनियम के तहत यह साबित करना आवश्यक होता है कि पीड़िता “बच्ची” है, अर्थात 18 वर्ष से कम आयु की है। न्यायाधीश ने कहा, “इस मामले में, पीड़ित अभियोजन पक्ष की गवाह ने अपनी गवाही में अपनी जन्मतिथि 1 सितंबर 2005 बताई थी, तथापि, अभियोजन पक्ष द्वारा इसकी पुष्टि करने वाला कोई जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य प्रामाणिक दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।” अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष पीड़िता की आयु का कोई प्रमाणिक सबूत प्रस्तुत करने में विफल रहा। न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने कोई भी स्वतंत्र गवाह पेश नहीं किया, जो स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र की पुष्टि कर सके, जिसका उल्लेख जांच अधिकारी ने किया था।
पीड़िता ने अदालत में कहा कि घटना एक बंद सार्वजनिक शौचालय में हुई थी, यह विवरण प्राथमिकी और घटनास्थल के पंचनामा (निरीक्षण) से विरोधाभासी था, जिसमें झाड़ियों वाली एक खुली जगह का वर्णन किया गया था। न्यायाधीश ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़िता के कपड़े पुलिस द्वारा जब्त नहीं किए गए। आरोपी द्वारा कथित तौर पर इस्तेमाल की गई रस्सी भी बरामद नहीं हुई है। प्राथमिकी में कथित कृत्य को अंजाम देते समय आरोपी द्वारा रस्सी के इस्तेमाल का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए, पीड़िता द्वारा बताए गए कथित कृत्य के विवरण और प्राथमिकी में उल्लिखित विवरण में स्पष्ट विसंगति है।”
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अदालत ने कहा कि जांच में “अंतर्निहित खामियां” थीं, अभियोजन पक्ष की एक महत्वपूर्ण गवाह, पीड़िता की छोटी बहन, जो कथित तौर पर घटनास्थल पर मौजूद थी, से पूछताछ नहीं की गई। अदालत ने कहा, “संयोगवश, अभियोजन पक्ष ने इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी से पूछताछ नहीं की है, जिसने स्वयं आरोपी को पीड़िता के साथ कथित कृत्य करते देखा था, और इससे अभियोजन पक्ष के मामले में एक बड़ी कमी पैदा होती है।” इसके अतिरिक्त, अदालत ने पंच गवाह की गवाही को अविश्वसनीय पाया, क्योंकि उसने जांच अधिकारी के साथ पूर्व परिचित होने और अन्य मामलों में पंच के रूप में कार्य करने की बात स्वीकार की थी। इन महत्वपूर्ण संदेहों को देखते हुए, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। इसलिए, आरोपी को संदेह का लाभ दिया गया और उसे बरी कर दिया गया।