बॉम्बे उच्च न्यायालय (pic credit; social media)
Bombay High Court on CIDCO Scheme: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सिडको की 22.5 प्रतिशत भूखंड वापसी योजना को “वैकल्पिक और स्वैच्छिक” बताया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि यह योजना किसी भी किसान या भूमि स्वामी पर अनिवार्य नहीं की जा सकती। यह निर्णय उन हजारों किसानों के लिए राहत भरा साबित हुआ है, जिनकी जमीनें विकास परियोजनाओं के लिए ली गई थीं।
न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरती साठे की खंडपीठ ने कहा कि यदि सिडको या कोई अन्य प्राधिकरण सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहित करना चाहता है, तो उसे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 तथा एमआरटीपी अधिनियम की धारा 126 के तहत ही प्रक्रिया अपनानी होगी। अदालत ने दो टूक कहा कि कोई भी प्रशासनिक नीति कानून से ऊपर नहीं हो सकती।
अदालत के इस फैसले से उन किसानों को बड़ी राहत मिली है जो लंबे समय से यह कह रहे थे कि सिडको की 22.5% योजना उन्हें जबरन थोपी जा रही है। अब यह साफ हो गया है कि किसान अपनी इच्छा से ही इस योजना को अपनाने या अस्वीकार करने के हकदार हैं।
नैना बिल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रकाश भीमराव बाविस्कर ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “यह विकास और न्याय के बीच संतुलन स्थापित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय है। यह आदेश किसानों और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा और भविष्य में नैना तथा नवी मुंबई हवाई अड्डा क्षेत्र में होने वाले विकास कार्य अब अधिक पारदर्शी और कानूनी दायरे में होंगे।”
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अगर सिडको को किसी परियोजना के लिए भूमि की जरूरत है, तो उसे कानूनी अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी करनी होगी और किसानों को न्यायसंगत मुआवजा देना होगा। किसी को भी भूमि वापसी योजना स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
यह फैसला न सिर्फ किसानों के हक में है बल्कि शासन-प्रशासन को भी यह याद दिलाता है कि नीतियां कानून से ऊपर नहीं होतीं। कोर्ट का यह निर्णय भविष्य के सभी भूमि विवादों के लिए मिसाल बनेगा।