मराठा शेर, छत्रपति शिवाजी महाराज (pic credit; social media)
Shivaji Maharaj Escaped From Aurangzeb: 17 अगस्त 1666 इतिहास का वह दिन जब आगरा की सलाखों के पीछे कैद मराठा शेर, छत्रपति शिवाजी महाराज, अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता और साहस के बल पर औरंगज़ेब को मात देकर आज़ाद हो गए।
यह सिर्फ़ एक पलायन नहीं था, बल्कि एक ऐसी घटना थी जिसने मुग़ल साम्राज्य की नींव हिला दी और स्वराज्य की शक्ति को नई दिशा दी।
सन 1666 भारत मुगल साम्राज्य की चकाचौंध में डूबा था। दिल्ली और आगरा के दरबार उस समय दुनिया के सबसे शक्तिशाली दरबारों में गिने जाते थे। लेकिन इसी दौर में एक मराठा राजा, अपनी तेज़ बुद्धि और अटूट स्वाभिमान के बल पर, उस साम्राज्य को उसकी ही राजधानी में चकमा देने वाला था। वह थे – छत्रपति शिवाजी महाराज।
अगस्त 1665 पुरंदर की संधि
1665 की पुरंदर की संधि ने मराठा और मुगलों के रिश्तों में एक नया मोड़ ला दिया। शिवाजी महाराज को 23 किले सौंपने पड़े और केवल 12 अपने पास रखने की इजाजत मिली। जयसिंह ने समझाया कि औरंगजेब से सीधी मुलाकात ही भविष्य का रास्ता तय कर सकती है। शिवाजी महाराज का मन तो नहीं मान रहा था, लेकिन जयसिंह की सलाह पर शिवाजी महाराज अपने पुत्र संभाजी राजे के साथ आगरा पहुंचे।
Source: (Book) जदुनाथ सरकार, “Shivaji and His Times”
12 मई 1666, औरंगजेब का जन्मदिन था। आगरा का लाल किला झूमरों और फूलों से जगमगा रहा था। चारों ओर से आए राजे-महाराजे, गहनों और उपहारों से बादशाह की शान में इज़ाफ़ा कर रहे थे। इसी भव्य दरबार में प्रवेश करते हैं – शिवाजी महाराज, अपने छोटे पुत्र संभाजी राजे का हाथ थामे। उन्होंने सोचा था कि उनकी वीरता और मराठा साम्राज्य की ताक़त को मान्यता मिलेगी, और उन्हें अग्रिम पंक्ति में सम्मान मिलेगा। लेकिन औरंगज़ेब ने उन्हें पीछे की ओर खड़ा कर दिया, उन सरदारों के बीच जिनका कोई बड़ा महत्व नहीं था।
औरंगजेब ने दरबार में शिवाजी महाराज का किया अपमान
यह केवल अपमान नहीं था, यह संदेश था – “मराठा शक्ति चाहे जितनी बढ़े, मुगल साम्राज्य के आगे वह अधीनस्थ है।” शिवाजी महाराज ने गहरी नज़र से दरबार देखा, और बिना झुके, अपमानित भाव से वहां से चले गए।
दरबार छोड़ना औरंगज़ेब को नागवार गुजरा। तुरंत आदेश हुआ कि शिवाजी और संभाजी को नजरबंद किया जाए। उन्हें जयसिंह के पुत्र रामसिंह की निगरानी में रखा गया। यह कोई अंधेरी जेल नहीं थी, बल्कि महल जैसी कैद थी।चारों ओर पहरेदार, जासूस, और हर गतिविधि पर निगरानी। एक शेर को सोने के पिंजरे में कैद कर दिया गया था। लेकिन औरंगज़ेब यह भूल गया था कि शेर का साहस और बुद्धि दीवारों से नहीं बंध सकती।
शिवाजी महाराज ने कैद से बहार निकलने की बनाई योजना
शिवाजी महाराज केवल तलवार के योद्धा नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच वाले सम्राट थे। कैद के दिनों में शिवाजी महाराज ने अपने बुद्धिमत्ता का प्रयोग किया। उन्होंने यहां से बहार निकलने की प्लानिंग बनाई। उन्होंने एक नई आदत शुरू की। वे रोज़ पूजा के लिए फलों, मिठाई और प्रसाद से भरे टोकरे बाहर भेजते थे। कई ऐतिहासिक ग्रंथ – जैसे मोडक, जदुनाथ सरकार, और मराठी बखर साहित्य – बताते हैं कि महाराज ने इसी “प्रसाद व्यवस्था” को अपनी योजना का आधार बनाया। शुरू में पहरेदार हर टोकरे को जांचते, लेकिन कुछ ही दिनों में यह आम बात लगने लगी। धीरे-धीरे यह आदत पहरेदारों के लिए “रोज़ की रस्म” बन गई। उन्होंने धीरे-धीरे पहरेदारों का विश्वास जीतना शुरू किया। यही छोटी सी आदत, आगे चलकर एक महाकाव्य बन गई।
महल से बाहर जाने वाले टोकरों में आज कुछ अलग था। एक विशाल टोकरे के भीतर – फलों और मिठाई के नीचे छुपे थे खुद शिवाजी महाराज और उनके पुत्र संभाजी राजे। पहरेदारों ने हमेशा की तरह सोचा – “रोज़ की तरह प्रसाद ही होगा।” बिना किसी संदेह के, टोकरे बाहर चले गए।
फलों की टोकरी में छुपा था शेर
और जब सूरज निकला, खबर गूँज उठी – “शिवाजी और संभाजी कैद से गायब हैं!” पूरा आगरा दरबार सन्न रह गया। औरंगज़ेब को समझ नहीं आया कि उसकी आँखों के सामने से यह कैसे संभव हो गया। औरंगज़ेब की प्रतिष्ठा धूल में मिल गई।
आगरा से निकलने के बाद शिवाजी महाराज और संभाजी राजे फकीर और साधु का वेश धारण कर गुप्त मार्ग से दक्षिण की ओर बढ़ रहे थे। यह यात्रा आसान नहीं थी। हर मोड़ पर खतरा, हर कदम पर मुगल सैनिकों की नजर। लेकिन इस कठिन समय में एक क्षण ऐसा भी आया जिसने इस पूरी घटना को मानवीय स्पर्श दिया।
शिवाजी महाराज ने माँ जीजाबाई से की मुलाकात
पुणे पहुँचने से पहले, शिवाजी महाराज साधु का वेश धारण किए अपनी माता जीजाबाई के सामने पहुंचे। जीजाबाई ने सामने साधु को देखा, लेकिन माँ का हृदय भला अपने पुत्र को पहचानने से चूकता कैसे? उन्होंने साधु के चेहरे की ओर देखा, और जैसे ही शिवाजी ने प्रणाम किया, जीजाबाई की आँखों से आँसू छलक पड़े। वह क्षण भावुक था।
एक तरफ़ माँ, जिनके हृदय में पुत्र की चिंता जल रही थी, दूसरी तरफ़ पुत्र, जिसने मृत्यु के मुहाने से निकलकर आज़ादी पाई थी। जीजाबाई ने शिवाजी को गले से लगा लिया और कहा, “मुझे पता था बेटा, तुम किसी भी कैद में बंधने वाले नहीं हो।”
Source: (Book) जदुनाथ सरकार, “Shivaji and His Times”
17 अगस्त 1666 का दिन, शिवाजी महाराज आगरा पलायन की घटना नहीं थी, बल्कि यह एक रणनीति की जीत थी। इसने साबित किया कि शिवाजी महाराज केवल तलवार के धनी नहीं, बल्कि अपार बुद्धि और धैर्य वाले नेता थे। इस घटना ने मराठा साम्राज्य के भविष्य को नई शक्ति दी और औरंगज़ेब को एक असहज सच्चाई दिखा दी कि शिवाजी महाराज को कोई कैद नहीं कर सकता।