कपास (pic credit; social media)
Import Duty on Cotton Removed: केंद्र सरकार ने कपास पर 11 प्रतिशत आयात शुल्क हटाने का बड़ा फैसला लिया है। इस कदम से कपड़ा उद्योग को सस्ते विदेशी कपास का लाभ तो मिलेगा, लेकिन बारामती समेत पूरे पुणे जिले के कपास उत्पादक किसानों के लिए यह संकट का सबब बन गया है। किसानों को डर है कि विदेशी कपास की बाढ़ से स्थानीय बाजार भाव नीचे गिर जाएंगे, जिससे उनकी आय 10 से 15 प्रतिशत तक घट सकती है।
कपास हमेशा से नकदी फसल मानी जाती है और औसतन चार महीने में तैयार हो जाती है। एक एकड़ में 10 से 15 क्विंटल कपास का उत्पादन होता है, जबकि इसकी खेती पर 40 से 50 हजार रुपये का खर्च आता है। ऐसे में यदि बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे गया तो किसान उत्पादन लागत भी नहीं निकाल पाएंगे।
बारामती कृषि उत्पन्न बाजार समिति के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में कपास का औसत भाव ₹6,500 से गिरकर ₹4,551 प्रति क्विंटल तक आ गया है। वहीं, इस साल सरकार ने एमएसपी में 8 से 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है।
मध्यम रेशे वाले कपास का एमएसपी ₹7,710 और लंबे रेशे वाले कपास का एमएसपी ₹8,110 तय किया गया है। लेकिन किसानों का मानना है कि सस्ते आयातित कपास की वजह से बाजार में इनके भाव गिर सकते हैं।
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पुणे जिले के बारामती, इंदापुर, दौंड और जुन्नर तहसीलों में बड़े पैमाने पर कपास की खेती होती है। इस बार कपास का रकबा बढ़कर 1,659 हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो औसत से 148 प्रतिशत अधिक है। उत्पादन बढ़ा है, लेकिन बाजार की स्थिति किसानों के लिए और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है।
सोनगांव, बारामती के किसान शंकर आटोले कहते हैं, “यदि मध्यम और लंबे रेशे वाले कपास का भाव एमएसपी से नीचे गया तो हमारी लागत निकलना मुश्किल हो जाएगा। आयात शुल्क हटने से कपड़ा उद्योग और व्यापारियों को भले फायदा हो, लेकिन हमारी कमाई 10 से 15 प्रतिशत तक घट जाएगी।”
किसानों का आरोप है कि सरकार ने उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह फैसला लिया है, लेकिन उनकी मेहनत और लागत पर पानी फिरता नजर आ रहा है। यदि स्थिति यही रही तो आने वाले सीजन में कपास की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकती है।