भारत के सपनों का गांव...साफ-सफाई से लेकर हाईटेक सुविधाओं तक सबकुछ, गाली देने पर लगता है 500 जुर्माना
Chandrapur News: महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व के पास स्थित छोटा सा गांव सतारा पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन गया है। यह गांव न केवल साफ-सफाई और सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां के लोगों की सामूहिक जिम्मेदारी और अनुशासन भी बेहद प्रेरणादायक हैं। यह गांव दूसरे गांवों से कहीं अधिक अलग है। यहां सफाई किसी खास अवसर पर नहीं, बल्कि रोज़ाना की जाती है। कचरा कूड़ेदान में डाला जाता है और घरों के बाहर बदबूदार नालियां नहीं दिखाई देतीं। गांव में छोटे-छोटे वॉटर फाउंटेन और शिवाजी महाराज की प्रतिमा उसे एक खास रूप देती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गांव वाले गंदी भाषा और गालीगलौज से दूर रहते हैं। जो कोई भी अभद्र भाषा का प्रयोग करता है, उसे 500 रुपये का जुर्माना भरना पड़ता है। एक इंस्टाग्राम रील में सतारा की चमचमाती गलियां और लोगों का अनुशासित जीवन दिखाया गया, जिसे लगभग 50 लाख लोगों ने देखा।
सतारा सिर्फ साफ-सफाई में ही नहीं, बल्कि सामुदायिक एकता, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और सामूहिक संकल्प की एक प्रेरणादायक कहानी बन चुका है। इस गांव की सूरत सरकारी पैसों या योजनाओं से नहीं बदली, बल्कि यहां के लोगों ने खुद मिलकर इसे बेहतर बनाया। गांव के सरपंच गजानन गुडाधे ने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज की किताब ग्राम गीता का अध्ययन किया, जिससे उन्हें प्रेरणा मिली। इस किताब में बताया गया था कि जब लोग एकजुट होकर किसी अच्छे कार्य के लिए जुटते हैं, तो वे अपने गांव को बदल सकते हैं। उन्होंने तुकडोजी महाराज की सीख को एक आंदोलन बना दिया, और सतारा ने पांच साल में जन सहयोग से अपनी पूरी सूरत बदल दी। अब यहां सफाई एक जीवनशैली का हिस्सा बन गई है, और सतारा अब ‘सपनों का गांव’ बन चुका है।
सरपंच गजानन गुडाधे ने बताया कि गांव के लोग अपनी घरों की सफाई खुद करते हैं, लेकिन हर रविवार को सेवामंडल के युवा स्वयंसेवक गांव की गलियों की सफाई करते हैं। कचरे को सूखा और गीला अलग-अलग किया जाता है और गांव के हर कोने में रखे कूड़ेदान भी साफ किए जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सतारा के हर घर में पानी का मीटर वाला नल लगा है, जिससे लोग पानी का सोच-समझकर उपयोग करते हैं। गांव में एक सामुदायिक आरओ प्लांट भी है, जो एटीएम की तरह काम करता है। यहां सभी परिवारों को कार्ड दिए गए हैं, जिनसे वे साफ पीने का पानी प्राप्त कर सकते हैं। घर से निकलने वाले गंदे पानी का उपयोग ग्राउंड वॉटर रीचार्ज के लिए किया जाता है।
गुडाधे बताते हैं कि शाम होते ही गांव में सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइटें जल उठती हैं, जबकि आसपास का घना जंगल अंधेरे में डूबा रहता है। दिलचस्प यह है कि सतारा में साफ-सफाई और अनुशासन गांववालों के व्यवहार में भी दिखते हैं। जो लोग गालीगलौज करते हैं, उन्हें 500 रुपये का जुर्माना लगता है, जिससे सार्वजनिक झगड़े लगभग खत्म हो गए हैं। सार्वजनिक जगहों पर गांव वालों का सामूहिक तालमेल शानदार है। बुजुर्ग लोग एक खास मनोरंजन केंद्र में बैठकर बातें करते हैं और टीवी देखते हैं, जबकि छात्र लाइब्रेरी में घंटों बिताते हैं। यहां 1,000 से अधिक किताबें हैं, और छात्र मुफ्त इंटरनेट और साफ पानी का इस्तेमाल करके अपनी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। पूरे गांव में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, और आंगनवाड़ी से लेकर लाइब्रेरी तक हर सरकारी इमारत सौर ऊर्जा पर चलती है।
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सतारा की बदली सूरत और बढ़ती प्रसिद्धि ने सरकारी अमले का ध्यान भी आकर्षित किया है। उप वन संरक्षक (ताडोबा कोर) आनंद रेड्डी का कहना है कि सतारा इको-टूरिज्म के लिए एक आदर्श मॉडल बन सकता है। सतारा यह दिखाता है कि बदलाव की शुरुआत संसाधनों से नहीं, बल्कि संकल्प से होती है। उन्होंने बताया कि बारह आदिवासी युवाओं को टाइगर सफारी के लिए टूरिस्ट गाइड के रूप में चुना गया है, जो अब पर्यटकों को गांव के भ्रमण पर ले जाएंगे।