नासिक जिला अस्पताल (सौ. सोशल मीडिया )
Nashik News In Hindi: जिला सरकारी अस्पताल में संचालित ‘विशेष नवजात देखभाल इकाई’ (SNCU) बीमार और कमजोर शिशुओं के लिए संजीवनी साबित हो रही है। 1 अप्रैल से 15 दिसंबर 2025 के बीच इस इकाई के माध्यम से कुल 1,596 शिशुओं का सफलतापूर्वक उपचार किया गया है।
जिला शल्य चिकित्सक डॉ. चारुदत्त शिंदे, अतिरिक्त जिला शल्य चिकित्सक डॉ. नीलेश पाटिल और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अविनाश गोरे ने यह जानकारी साझा की। शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार और यूनिसेफ के सहयोग से यह विशेष पहल शुरू की गई है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इसे देशभर में लागू किया गया।
नासिक जिले में जिला अस्पताल के अलावा मालेगांव के सरकारी महिला अस्पताल, कलवण और त्र्यंबकेश्वर के उपजिला अस्पतालों में भी यह सुविधा उपलब्ध है। इन केंद्रों पर आधुनिक मशीनरी और प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ की तैनाती की गई है ताकि शिशुओं को त्वरित उपचार मिल सके।
इन विशेष कक्षों में न केवल नासिक बल्कि अन्य जिलों से आने वाले ‘हाई रिस्क’ वाले शिशुओं को भी भर्ती किया जाता है। उपचार की मुख्य विशेषताएं और सुविधाएं निम्नलिखित हैं- दो से ढाई किलोग्राम वजन वाले शिशुओं के लिए विशेष देखभाल प्रदान की जाती है।
37 सप्ताह से पहले जन्मे बच्चे, निमोनिया, पीलिया, संक्रमण, सांस लेने में तकलीफ और फेफड़ों की कमजोरी (हायलाइन मेम्ब्रेन डिजीज) जैसी गंभीर समस्याओं का यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में इलाज होता है। अस्पताल में जन्मे बच्चों के साथ-साथ बाहर से रेफर होकर आने वाले बच्चों के लिए अलग-अलग वार्ड की व्यवस्था है, ताकि संक्रमण के खतरे को कम किया जा सके।
अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सकों ने शिशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए माता के स्वास्थ्य पर विशेष जोर दिया है। जिला शल्य चिकित्सक डॉ. चारुदत्त शिंदे के अनुसार, यदि मां का पोषण और आहार अच्छा हो, तो शिशुओं को जन्मजात बीमारियों से बचाया जा सकता है। गर्भावस्था के दौरान परिवार को मां के खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए और समय-समय पर डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
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बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अविनाश गोरे ने बताया कि इस कक्ष के माध्यम से शिशुओं का पूर्णतः निःशुल्क उपचार किया जाता है। स्वस्थ शिशु के जन्म के लिए समाज को बाल विवाह जैसी कुरीतियों से बचना चाहिए क्योंकि कम उम्र में मां बनने से शिशु के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। अस्पताल का यह विशेष कक्ष उच्च जोखिम वाले शिशुओं की जान बचाने के लिए सदैव तत्पर है।