चेन्नई, अहमदाबाद और बेंगलुरु के मुकाबले नासिक की हवा ज्यादा दूषित
नासिक : नासिक शहर में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गई है। केंद्र सरकार की नेशनल क्लीन एअर प्रोग्राम (NCAP)योजना के तहत नासिक की हवा की शुद्धता के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं, लेकिन शहर की हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ है। नासिक की हवा की गुणवत्ता हैदराबाद, चेन्नई, अहमदाबाद और बेंगलुरु जैसे शहरों की तुलना में भी खराब है। यहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 113 पर पहुंच गया है, जो कि विश्व स्तर पर वायु प्रदूषण से प्रभावित शहरों में 274वें स्थान पर है।
शहर की सड़कों पर धूल और वाहनों से होने वाला प्रदूषण वायु गुणवत्ता में गिरावट का कारण बन रहा है। इसलिए, नासिक की हवा की शुद्धता के लिए मनपा को नए सिरे से योजना बनानी होगी। यहां वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई है, जो बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण सड़कों पर वाहनों की बढ़ती संख्या से जुड़ी हुई है।
यह एक दुष्चक्र बन गया है, जो न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। केंद्र सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण कदम है कार्बन उत्सर्जन को कम करना। इसके लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक परिवहन को अधिक कुशल बनाना।
इसके अलावा हवा में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं को आर्थिक सहायता भी दी गई है। महापालिका को भी 87 करोड़ रुपये का फंड दिया गया है। इसमें से मनपा ने अब तक 45 करोड़ रुपये का फंड खर्च किया है। लेकिन, केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल द्वारा हवा की गुणवत्ता की दैनिक माप में पता चला है कि इस फंड का उपयोग शहर की हवा को स्वच्छ बनाने के बजाय ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है।
शुद्ध हवा के लिए शहर का AQI 50 के अंदर होना चाहिए, लेकिन नासिक का AQI 113 पर पहुंच गया है, जो खराब श्रेणी में आता है। बात करें देश के प्रमुख शहरों के AQI की तो मुंबई में ये 121, कोलकाता में 126, हैदराबाद में 103, चेन्नई में 112, अहमदाबाद में 109, बेंगलुरु में 91 है। इस तरह नासिक की हवा का AQI मुंबई के बाद दूसरे स्थान पर है, जो कि चिंताजनक है।
महाराष्ट्र की ताजा खबरों के लिए क्लिक करें
नासिक में केटीएचएम कॉलेज में जुलाई 2005 से हवा की गुणवत्ता मापन यंत्र कार्यरत है। इसके अलावा निजी संस्थाओं में भी इस तरह के वायु गुणवत्ता मापक यंत्र स्थापित हैं। इनसे प्राप्त आंकड़ों ने ‘स्वच्छ सुंदर हरित नासिक’ के नारे को झूठा साबित कर दिया है। हवा की गुणवत्ता में गिरावट के कारण दमा के रोगियों सहित संवेदनशील लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। हवा की गुणवत्ता को मापने के लिए विभिन्न देशों और क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं। हवा की गुणवत्ता सूचकांक (AQI)भी इसे मापने का एक तरीका है जिससे पता चलता है कि हवा की गुणवत्ता किस श्रेणी में है। इसमें 0 से 50 तक की रीडिंग अच्छा, 51 से 100 मध्यम, 101 से 200 खराब, 201 से 300 तक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक, 301 से 400 बहुत खतरनाक श्रेणी में आता है।