हाई कोर्ट ने रोकी जांच (फाइल फोटो)
High Court: नागपुर में शालार्थ आईडी घोटाले में कुछ शिक्षकों की विभागीय जांच इस मामले के एक आरोपी को ही सौंप दिए जाने का कड़ा विरोध करते हुए निखत खान एवं अन्य 29 शिक्षकों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की जिसमें जांच अधिकारी पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए सम्पूर्ण मामले की निष्पक्ष जांच कराने का आदेश देने का अनुरोध किया गया। साथ ही उनके खिलाफ चल रही विभागीय जांच को किसी निष्पक्ष और उच्च अधिकारी को स्थानांतरित करने की मांग की।
दोनों पक्षों की दलीलों पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने अगली तारीख तक किसी भी प्रकार की जांच करने पर रोक लगा दी। यहां तक कि याचिका में संशोधन कर अधिकारी को नाम से प्रतिवादी बनाने की अनुमति भी प्रदान की। कोर्ट ने राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने का आदेश भी दिया। अदालत ने यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि इस दौरान मामले से जुड़ी कोई भी जांच नहीं की जाएगी।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार उपसंचालक उल्हास नरड पर खुद फर्जी शालार्थ आईडी बनाने का आरोप है। इस संबंध में साइबर पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। एफआईआर 12 मार्च 2025 को दर्ज की गई थी। जांच से पता चला है कि उपसंचालक उल्हास नरड ने कथित तौर पर अपने आईडी और पासवर्ड का उपयोग करके फर्जी शालार्थ आईडी बनाए थे।
जांच एजेंसी ने यह भी खुलासा किया है कि उन्होंने 632 शिक्षकों और गैर शिक्षण कर्मचारियों के फर्जी शालार्थ आईडी बनाए और सरकारी धन का दुरुपयोग किया। इस मामले में उल्हास नरड सहित 3-4 अन्य उपसंचालक गिरफ्तार किए गए हैं। आपराधिक कार्यवाही भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 318(4), 319(2), 336(3), 338, 340(1), 340(2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 65(e) के तहत दर्ज की गई है।
याचिका में कहा गया है कि शिक्षा आयुक्त, पुणे ने 25 जुलाई 2025 को एक आदेश पारित किया था जिसमें उल्हास नरड को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद नरड ने 4 अगस्त 2025 को याचिकाकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया जिसमें उन्हें 7 दिनों के भीतर लिखित जवाब और सबूत जमा करने को कहा गया। याचिकाकर्ताओं ने 20 अगस्त 2025 को अपना जवाब प्रस्तुत किया था।
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हालांकि 4 सितंबर 2025 को नरड ने याचिकाकर्ताओं को सूचित किया कि उनका जवाब संतोषजनक नहीं है और उन्होंने दस्तावेज जमा नहीं किए हैं। याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क यह है कि नरड द्वारा जांच करना पक्षपातपूर्ण होगा क्योंकि वे स्वयं इस फर्जीवाड़े के आपराधिक मामले में शामिल हैं। यह ‘कोई भी व्यक्ति अपने मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता’ के प्राकृतिक न्याय के मौलिक सिद्धांत का उल्लंघन है।