अवैध रेत परिवहन (सौजन्य-IANS)
Nagpur News: रेत के परिवहन में उपयोग में लाए जा रहे वाहन को पुलिस द्वारा जब्त कर लिया गया। इसी तरह से तहसीलदार की ओर से अवैध उत्खनन का हवाला देते हुए जुर्माना भी लगाया गया। इन दोनों कार्रवाई को चुनौती देते हुए कैसर खान, अब्दुल साजिद अब्दुल खालिक शेख, शेख नाजिम और सैयद जफर की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।
याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश एम.डब्ल्यू. चांदवानी ने पुलिस द्वारा वाहनों को जब्त करने की कार्रवाई महाराष्ट्र भू-राजस्व संहिता, 1966 (MLR कोड) की धारा 48(8) के तहत अधिकार क्षेत्र से बाहर होने तथा परिणामस्वरूप राजस्व प्राधिकरणों द्वारा की गई आगे की सभी कार्रवाई भी अधिकार क्षेत्र से बाहर होने का अहम मौखिक फैसला सुनाया। साथ ही हाई कोर्ट ने एक साथ 4 रिट याचिकाओं का निपटारा भी कर दिया।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार इन सभी मामलों में पुलिस स्टेशन अधिकारी ने शुरू में वाहनों को जब्त किया था। इसके बाद तहसीलदार ने MLR कोड की धारा 48 के तहत कार्रवाई शुरू की। दोनों पक्षों की दलीलों के बाद हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जुर्माने की कार्रवाई भी अधिकार क्षेत्र से बाहर थी।
MLR कोड की धारा 48(8)(2) के प्रावधानों के अनुसार अवैध परिवहन में उपयोग किए गए वाहनों को छोड़ने के लिए जुर्माना लगाने का अधिकार केवल जिलाधिकारी या उपजिलाधिकारी या उपजिलाधिकारी के पद से नीचे के किसी अधिकारी को नहीं है, जिसे इस संबंध में अधिकृत किया गया हो।
कोर्ट ने मौखिक आदेश में स्पष्ट किया कि इन सभी मामलों में वारुड के तहसीलदार ने जुर्माना लगाया, जबकि तहसीलदार का पद उपजिलाधिकारी के पद से नीचे होता है। तहसीलदार ने वाहनों को छोड़ने के लिए ₹1,04,500 रु. से लेकर ₹2,06,650 र. तक (रेत उत्खनन और रॉयल्टी सहित) का जुर्माना लगाया था।
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उपजिलाधिकारी के पद से नीचे के अधिकारी (तहसीलदार) द्वारा वाहनों को छोड़ने के लिए जुर्माना लगाना अधिकार क्षेत्र से बाहर है। हाई कोर्ट ने सभी रिट याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। साथ ही तहसीलदार द्वारा पारित सभी संबंधित आदेशों को रद्द भी कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा अदालत के आदेश के तहत कोई राशि जमा की गई है, तो वह राशि 6 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं को वापस कर दी जाए।