सुनील केदार
नागपुर. जिला परिषद पदाधिकारियों के कक्ष में लगी पूर्व मंत्री सुनील केदार की तस्वीरों को निकालने के लिए सीईओ ने 7 जून 2002 के शासकीय परिपत्रक का हवाला देते हुए पदाधिकारियों को सीधे लिखित निर्देश दिया था. बावजूद इसके किसी ने भी तस्वीर को नहीं निकाला. अब सीईओ सौम्या ने पदाधिकारियों के स्वीय सहायकों को लिखित आदेश दिया है कि वे तस्वीरों को निकालें. उन्होंने अपने आदेश में कहा है कि स्वीय सहायक कार्यालयीन कर्मचारी होने के नाते पदाधिकारी के कार्यालय की व्यवस्था की जवाबदारी उनकी है. वे शासकीय परिपत्रक के नियमानुसार व्यवस्था बनाएं और 48 घंटों में उसकी रिपोर्ट दें.
सीईओ के आदेश के बाद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व चारों विषय समिति सभापतियों के पीए यानी स्वीय सहायक धर्म संकट में आ गए हैं. वे अपने पदाधिकारी के आदेश के बिना ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें अधिकार ही नहीं है, दूसरी ओर अगर सीईओ के आदेश का पालन नहीं करते तो वे उन पर आदेश के उल्लंघन की कार्रवाई कर सकती हैं.
सुनील केदार की वजनदारी जिले के सारे अधिकारी भी जानते हैं. उनके गुट का ही जिला परिषद पर एकतरफा कब्जा है. पदाधिकारी उनके कट्टर समर्थक हैं जो किसी हालत में अपने ‘आदर्श’ की तस्वीर कक्ष से नहीं निकालने वाले हैं. सीईओ के आदेश के बाद भी उन्होंने तस्वीर नहीं निकाली तो अब उन्होंने पदाधिकारियों के पीए को अल्टीमेटम दे दिया. उनके आदेश के बाद तो चर्चा यह चल निकली है कि सत्ताधारियों, विरोधी पक्ष बीजेपी के झगड़े में तृतीय श्रेणी कर्मचारियों (पीए) को बलि का बकरा बना दिया गया है. बताते चलें कि अध्यक्ष के सचिव क्लास वन अधिकारी डिप्टी सीईओ जीएडी, ईई ग्रामीण जलापूर्ति विभाग होते हैं.
सीईओ के इन अधिकारियों को अध्यक्ष के कक्ष से केदार की तस्वीर को निकालने का आदेश देना था. इसी तरह उपाध्यक्ष के सचिव कार्यकारी अभियंता बांधकाम विभाग और डीएचओ हैं. महिला व बाल कल्याण सभापति के सचिव जिला कार्यक्रम अधिकारी म.बा.कल्याण, समाज कल्याण सभापति के सचिव जिला समाज कल्याण अधिकारी, कृषि सभापति के सचिव कृषि विकास अधिकारी, जिला पशुसंवर्धन अधिकारी और वित्त व शिक्षा सभापति के सचिव प्राथमिक शिक्षाधिकारी व कैफो हैं.
सीईओ पदाधिकारियों से सचिवों को उक्त आदेश देतीं तो हो सकता है वे पदाधिकारियों को इस संदर्भ में विश्वास में लेने का प्रयास भी करते लेकिन पदाधिकारियों के पीए ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर सकते. वे तो उनके आदेशों का ही पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. सीईओ के आदेश से वे भयभीत हैं कि क्या करें, क्या ना करें. चर्चा तो यह भी है कि राजनीतिक खेल और वरिष्ठ अधिकारियों के पल्ला झाड़ने की नीति में छोटे कर्मचारियों को फंसा दिया गया है. यह तो साफ है कि अगर सीईओ ने पदाधिकारियों के सचिवों को भी उक्त आदेश दिया होता तो शायद वे भी केदार की तस्वीर हटाने की हिम्मत करने से हिचकिचाते. चर्चा यह भी चल रही है कि शायद अधिकारियों को इस संकट से बचाने के लिए पदाधिकारियों के स्वीय सहायकों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है.