किसान आत्महत्या (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Vidarbha agriculture crisis: नरखेड़ तहसील की उपजाऊ मिट्टी आज किसानों के खून से लाल हो गई है। दुनिया का पेट भरने वाला किसान आज अपने ही गुजारे के लिए जूझ रहा है। दिल दहला देने वाली बात यह है कि एक साल में 20 किसानों ने आत्महत्या कर ली है, और इन मौतों ने पूरे विदर्भ को हिलाकर रख दिया है। किसान कर्ज, बढ़ती प्रोडक्शन कॉस्ट और अपनी फसलों की बढ़ती कीमतों के दबाव में दबे जा रहे हैं।
फसल बीमा, सब्सिडी और मदद स्कीम के वादे सिर्फ कागज पर लिखे शब्द बनकर रह गए हैं। हर आत्महत्या के पीछे एक टूटा हुआ परिवार, एक रोती हुई मां, एक विधवा पत्नी और एक बच्चा होता है जो बाल बाल बच जाता है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं, “हर साल सरकार आत्महत्या पर चर्चा करती है, लेकिन कोई ठोस फैसला नहीं लेती। मौत का यह खेल तब तक नहीं रुकेगा जब तक किसान को रियायतें, गारंटीड कीमतें और एक टिकाऊ पॉलिसी नहीं मिल जाती।”
यह साफ है कि नरखेड़ तहसील इस समय किसान आत्महत्या में सबसे आगे है। फिर भी, सरकार की ओर से कोई ठोस योजना नहीं है। सरकार की चुप्पी और स्थानीय विधायक की निष्क्रय नीति किसानों के दर्द को और गहरा कर रही है। मौत की कगार पर पहुंचे इस जमीन के किसानों की समस्या सिर्फ़ आर्थिक ही नहीं है, यह सरकार की संवेदनशीलता का भी मामला है।
आज नरखेड़ तहसील के हर कोने से एक ही चीख सुनाई देती है, “हम जीना चाहते हैं… लेकिन हमें जीने कौन देगा?” भारी बारिश, फसल की बर्बादी और सरकार की गलत पॉलिसी के कारण नरखेड़ तहसील के किसान परेशान हैं। इस वजह से हर महीने नरखेड़ तहसील में दो किसान आत्महत्या कर लेते हैं। इसलिए, ऐसा देखा जा रहा है कि इस सरकार में किसान की जान की कोई कीमत नहीं है।
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यहां तक कि स्थानीय विधायक भी आत्महत्या करने वाले किसान के घर नहीं जाते। इसलिए, इस तहसील में एक दुखद स्थिति बन गई है जहां सिर्फ चुनाव के समय ही किसान याद आता है। यह तहसील पूरे देश में किसान के आत्मसम्मान के तहसील के रूप में जाना जाता है। इसलिए, इस तहसील में होने वाली किसान आत्महत्या को गंभीरता से देखने की जरूरत है।
जब एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार को आर्थिक मदद देने का वादा किया था। सरकार ने आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार की जानकारी भी इकड्डा की थी। लेकिन किसान के परिवार को अभी तक आर्थिक मदद नहीं मिली है। अगर चाहे तो मुख्यमंत्री बदला जा सकता है, इसलिए आत्महत्या करने वाले किसान का परिवार पूछ रहा है कि क्या उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपना वादा निभाएंगे।