सुप्रीम कोर्ट और राज्य चुनाव आयोग (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Supreme Court vs Election Commission: राज्य चुनाव आयोग ने स्थानीय निकायों में महानगरपालिकाओं के चुनाव को लेकर घोषणा कर दी। भले ही 2 महानगरपालिकाओं में आरक्षण 50 प्रतिशत के पार जा रहा हो किंतु चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया गया है। ऐसे में चुनाव के भविष्य पर ही प्रश्नचिह्न होने के बीच मंगलवार को मनपा आयुक्त अभिजीत चौधरी ने भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट में महानगरपालिका पार्टी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं। यदि चुनाव आयोग के निर्देश प्राप्त होते हैं तो ही प्रभागों के आरक्षण की स्थिति बदल सकती है। उन्होंने कहा कि मनपा में आरक्षण 50% की सीमा को पार कर चुका है। इस संबंध में राज्य चुनाव आयोग ने सूचित किया है कि चुनाव सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अधीन आयोजित किए जाएंगे। जब तक आयोग द्वारा कोई अलग निर्देश प्राप्त नहीं होता, तब तक मौजूदा घोषित आरक्षण में कोई बदलाव नहीं होगा।
15 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन चुनाव होने जा रहे हैं। इस दिन शहर के हर कोने पर ओ-काट की आवाजें गूंजते रहती है। इसी तरह का कुछ हाल महानगरपालिका के चुनाव में ओबीसी के आरक्षण का है। चुनाव प्रबंधन संभाल रहे मनपा प्रशासन की ओर से स्पष्ट कर दिया गया कि फिलहाल आरक्षण बदलने के कोई संकेत आयोग से नहीं है, जबकि जानकारों की मानें तो सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं होने का आदेश दिया है, साथ ही चुनाव सम्पन्न कराने का भी आदेश दिया है।
ऐसे में किस आदेश का पालन पहले किया जाए, यह राज्य चुनाव आयोग को कराना है जिस पर चुनाव आयोग ने पहले चुनाव कराने का मन बना लिया है। यदि चुनाव पूरे होने के बाद फैसले के अनुसार आरक्षण को गैर कानूनी करार दिया जाता है तो वर्तमान आरक्षण के अनुसार जीतकर आने वाले ओबीसी प्रत्याशियों के लिए भी यह किसी ‘पतंगबाजी’ से कम नहीं होगा।
मंगलवार को पत्र-परिषद में सवालों के जवाब देते हुए आयुक्त चौधरी ने कहा कि मतदाता सूची में मनपा की ओर से किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया जाता है। यह केवल जिला प्रशासन को ही अधिकार रहता है।
मनपा प्रशासन द्वारा जिला प्रशासन से विधानसभा चुनावों की प्राप्त मतदाता सूची को केवल प्रभागों के अनुसार अलग-अलग करना होता है। मनपा आयुक्त की ओर से भले ही मतदाता सूची को लेकर स्पष्ट किया गया हो किंतु सूची में कहीं पर पिता का नाम ‘महाराष्ट्र’ तो मतदाता का नाम ‘नागपुर’ होने की वास्तविकता ज्यों की त्यों है।
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मनपा प्रशासन की माने तो अंतिम मतदाता सूची घोषित होने के बाद भी डुप्लीकेट मतदाताओं की जांच जोनल स्तर पर जारी है जिसके फोटो का मिलान किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर 95,000 के करीब डुप्लीकेट मतदाता उजागर होने की भी जानकारी दी जा रही है किंतु अंतिम मतदाता सूची में अब किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं होने का दावा भी किया जा रहा है।
इस तरह से मतदाता सूची को लेकर संभ्रम की स्थिति है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार उन्हें फोटो सहित मतदाता सूची मिलने पर कहां-कहां पर डुप्लीकेट मतदाता हैं, उसकी खोजबीन पार्टी स्तर पर की जा सकती है। साथ ही बोगस वोटिंग को भी रोका जा सकता है किंतु प्रशासन की ओर से फोटो सहित मतदाता सूची उपलब्ध कराई जानी चाहिए।