हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Nagpur News: धामनगांव गाडी निवासी सोयब शाह रुस्तम शाह और पारडी निवासी अलीम शाह इकबाल शाह ने समिति की ओर से खारिज किए गए दावे को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर हाई कोर्ट ने उक्त आदेश जारी किया। दोनों पक्षों की लंबी दलीलों के बाद हाई कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ताओं को ‘छप्परबंद’ विमुक्त जाति से संबंधित होने का दर्जा प्रदान किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि वे ‘छप्परबंद’ जनजाति से संबंध रखते हैं जिसे 21 नवंबर 1961 और 20 मार्च 1978 की अधिसूचना के तहत विमुक्त जाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। सोयब शाह रुस्तम शाह को पहले महाराष्ट्र ग्राम पुलिस अधिनियम, 1967 की धारा 5 के अनुसार विमुक्त जाति श्रेणी में 13 नवंबर 2018 से 12 नवंबर 2023 की अवधि के लिए पुलिस पाटिल के रूप में भी नियुक्त किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने अपने दावों के समर्थन में पैतृक रक्त संबंधियों को जारी किए गए जनजाति वैधता प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए थे। सोयब शाह ने अपने चचेरे चाचा रहमत शाह रशीद शाह को जारी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, जबकि अलीम शाह ने अपने वास्तविक चाचा सलीम शाह नूर शाह को जारी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था किंतु समिति ने उनके दावे को खारिज कर दिया।
सरकार की पैरवी कर रहे सहायक सरकारी वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजी साक्ष्य दर्शाते हैं कि वे ‘छप्परबंद’ जनजाति की बजाय ‘फकीर’ जाति से संबंधित हैं। ‘फकीर’ महाराष्ट्र राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची में शामिल एक जाति है। समिति ने याचिकाकर्ता के दादा के स्कूल छोड़ने के प्रमाणपत्र और परदादा इमाश्या फकीर के कोतवाल बुक एक्सट्रैक्ट जैसे पुराने दस्तावेज़ों में ‘फकीर’ जाति के उल्लेख को दावे के विपरीत माना।
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इसके अलावा समिति ने चचेरे चाचा रहमत शाह रशीद शाह को जारी वैधता प्रमाणपत्र पर भरोसा करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि उनके पास यह जानने का कोई आधार नहीं था कि वह प्रमाणपत्र किस आधार पर जारी किया गया था। 2 सदस्यों ने दावे को खारिज कर दिया। हालांकि एक सदस्य ने असहमतिपूर्ण आदेश पारित करते हुए दावे को वैध माना था।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया था कि एक बार पैतृक पक्ष के रक्त संबंध में जनजाति वैधता प्रमाणपत्र जारी हो जाने के बाद समिति को आवेदक के दावे को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यदि पहले का प्रमाणपत्र धोखाधड़ी से प्राप्त नहीं किया गया है या क्षेत्राधिकार के बिना जारी नहीं किया गया है तो समिति को प्रमाणपत्र देने से मना नहीं करना चाहिए। चूंकि याचिकाकर्ता के रक्त संबंधियों के पक्ष में वैधता प्रमाणपत्र पहले से ही जारी किए जा चुके हैं और समिति ने उनके रिश्ते पर कोई विवाद नहीं किया है, इसलिए याचिकाकर्ता भी ‘छप्परबंद’ जनजाति का वैधता प्रमाणपत्र प्राप्त करने के हकदार हैं।