मनपा में वर्चस्व की लड़ाई तेज
नागपुर: ओबीसी आरक्षण और प्रभाग-वार्ड परिसीमन के संदर्भ में अदालत में मामला होने के चलते राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव नहीं हो पा रहे थे लेकिन जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने 4 महीनों के भीतर राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव करवाने का निर्देश दिया जिले के ग्रामीण भागों में सभी पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह देखा जा रहा है। जिला परिषद में 18 जनवरी से प्रशासक राज चल रहा है लेकिन अगर सिंतबर तक चुनाव करवा लिए गए तो जनप्रतिनिधियों का राज लौट आएगा। जिले में मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियों कांग्रेस व भाजपा द्वारा चुनाव की तैयारी जोर-शोर से की जा रही है।
मविआ व महायुति दो गठबंधन राज्य में हैं और जिला परिषद का चुनाव स्वतंत्र लड़ा जाएगा या फिर गठबंधन में, यह भी देखने वाली बात होगी। मुख्य पार्टी के पदाधिकारियों का कहना है कि फिलहाल तो चुनाव आयोग के रोस्टर जारी होने यानी चुनाव कार्यक्रम जारी होने का इंतजार है लेकिन यह तय है कि मुकाबला जोरदार ही होगा।
वर्ष 2020 के चुनाव में जिले के दिग्गज कांग्रेसी नेता सुनील केदार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था। उन्होंने सत्ताधारी भाजपा को पटकनी देते हुए पूर्ण बहुमत से जिला परिषद में कांग्रेस का परचम लहराया था। 58 सदस्यों वाली जिप में कांग्रेस ने 32 सीटों पर जीत हासिल कर एकतरफा कब्जा कर लिया था। उसके मित्रदल राकां को 8 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा महज 14 सीटों में सिमट गई थी। इसके चलते पूरे 5 वर्ष के कार्यकाल में विपक्ष बेहद कमजोर नजर आया।
शिवसेना, शेकाप, गोंगपा और निर्दलीय के 1-1 सदस्य चुनकर आए थे। अब आने वाला चुनाव कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न होगा। लोकसभा चुनाव में केदार ने अपनी पसंद के उम्मीदवार को रामटेक सीट से जितवाकर अपनी ताकत दिखाई थी लेकिन उसके बाद भाजपा ने विधानसभा चुनाव में केदार के गढ़ को बुरी तरह ध्वस्त कर उनकी पत्नी अनुजा केदार को परास्त कर दिया। इसी तरह काटोल विस सीट पर पूर्व गृह मंत्री व राकां शरद पवार गुट के नेता अनिल देशमुख के बेटे सलिल को पराजित कर भाजपा ने उनके गढ़ पर कब्जा जमा लिया।
विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी की जिले में एक बार फिर वजनदारी बढ़ गई है। केदार व देशमुख का गढ़ हाथ से जाने के बाद से उनके समर्थकों में उत्साह कुछ ठंडा पड़ गया है। राज्य में महायुति की सरकार भी आ चुकी है। स्थानीय निकाय चुनाव के पूर्व फिर भाजपा व महायुति में शामिल घटक दल शिंदे शिवसेना और राकां अजित पवार गुट ने महाविकास आघाड़ी में शामिल दलों कांग्रेस, उद्धव ठाकरे शिवसेना व राकां शरद पवार पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को फोड़कर अपनी पार्टियों में मिलाने का सिलसिला शुरू कर रखा है।
महायुति विपक्षी दलों को जिले की हर तहसील में स्थानीय स्तर पर कमजोर करने की रणनीति पर चल रही है। वहीं केदार व देशमुख भी किसी भी सूरत में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए पूरी ताकत से जुट गए हैं। केदार गुट किसी भी हाल में जिला परिषद में कांग्रेस की वापसी की रणनीति पर काम कर रहा है। पूर्व पदाधिकारी ग्रामीण भागों में जनसंपर्क में लगे हुए हैं। देशमुख का अपने क्षेत्र में नियमित जनसंपर्क जारी है। यह चुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न होगा। वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले और शिंदे सेना से महायुति सरकार में राज्य मंत्री आशीष जायसवाल जेडपी हथियाने का प्रयास करेंगे। यह उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न होगा।