देवेंद्र फड़नवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार
Maharashtra Politics: नेताओं की नजरें अब महामंडलों के पदों पर टिकी हैं। हालांकि जानकारी के मुताबिक इन महामंडलों का वितरण आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के बाद किया जाएगा। राज्य सरकार ने महामंडलों के वितरण का फॉर्मूला तय कर लिया है जिसमें भाजपा को 44%, शिंदे गुट को 33% और राष्ट्रवादी (अजित पवार) गुट को 23% महामंडल मिलेंगे।
साथ ही यह साफ कर दिया गया है कि वितरण इन चुनावों में नेताओं के प्रदर्शन के आधार पर होगा जिसके कारण तीनों दलों में पदों के लिए जोरदार होड़ मची हुई है। सत्ता में रहने पर हर किसी को अपना हिस्सा चाहिए होता है और इसी उम्मीद में तीनों दलों के कई नेता पद की आस लगाए बैठे हैं।
जिन विधायकों को मंत्री पद नहीं मिला, वे कम से कम एक अच्छे महामंडल की उम्मीद कर रहे हैं। वहीं पार्टी के अन्य नेता, जो जनप्रतिनिधि नहीं हैं लेकिन बड़े पदाधिकारी हैं, उनकी भी उम्मीदें बढ़ गई हैं। जब से राज्य में महायुति सरकार बनी है तब से महामंडलों के वितरण को लेकर अक्सर विवाद होता रहा है। सत्ता में सहयोगी छोटी पार्टियों को भी हिस्सा देना पड़ता है, इसलिए पहले उन्हें उनके कोटे के महामंडल दिए जाते हैं जिसके बाद ही पार्टी के भीतर विचार होता है।
पार्टी | विधानसभा | विधान परिषद | लोकसभा | राज्यसभा |
---|---|---|---|---|
भाजपा (BJP) | 132 | 20 | 9 | 7 |
शिंदे गुट | 57 | 5 | 7 | 1 |
राष्ट्रवादी (अजीत) | 41 | 6 | 1 | 3 |
महामंडल देकर असंतोष को शांत करना एक आसान तरीका होता है, इसीलिए नेताओं को महामंडलों का लालच देकर उन्हें शांत रखा जाता है और उनकी परीक्षा भी ली जाती है। कई बार तो वितरण को लेकर भड़काव भी होता है क्योंकि महत्वपूर्ण और कम महत्वपूर्ण महामंडलों के बंटवारे पर पार्टी के भीतर और गठबंधन में विवाद हो जाता है।
महामंडलों का वितरण सभी दलों के लिए सिरदर्द बन गया है। कई लोगों को महामंडल का वादा दिया जाता है लेकिन असल में कुछ ही लोगों को यह मिलता है। महामंडलों का महत्व समझकर उन्हें पार्टी के बल के अनुसार बांटा गया है। कुछ महामंडलों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा होता है तो कुछ को राज्य मंत्री का, इसलिए बड़े और महत्वपूर्ण कैबिनेट स्तर के महामंडल पाने के लिए अभी भी खींचतान जारी है।