नाना पटोले व देवेंद्र फडणवीस (डिजाइन फोटो)
नागपुर: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद अब कभी भी निकाय चुनाव का बिगुल बज सकता है। ऐसे में राज्य की राजनीति में पार्टियों ने स्थानीय स्तर पर अपनी ताकत को टटोलना शुरू कर दिया है। आरएसएस के गढ़ यानी नागपुर महानगर पालिका में एक बार फिर से भाजपा सत्ता में काबिज होने की तैयारी में है। यहां भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला होना है। लेकिन क्या दोनों ही पार्टियां अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर लड़ेगी या अकेले ही चुनावी मैदान में उतरेगी यह सबसे बड़ा सवाल है।
नागपुर महानगर पालिका (NMC) की बात करें तो भाजपा की स्थिति मजबूत है। 2017 में हुए मनपा के चुनाव में भाजपा ने 151 में से 108 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 53 फीसदी से अधिक मतदान पाया था। उत्तर नागपुर में 15 जगहों पर हार को अलग रखा जाए तो भाजपा के 136 में से 108 उम्मीदवार जीते थे। भाजपा का जीत का प्रदर्शन 80% से अधिक था।
नागपुर में इससे पहले भाजपा गठबंधन के प्रयाेग करती रही है। मनपा की सत्ता के लिए भाजपा ने आरपीआई से लेकर मुस्लिम लीग से भी गठबंधन किया, लेकिन पिछले चुनाव से भाजपा सहयोगी दलों से किनारा करती नजर आ रही है।
नागपुर मनपा में कांग्रेस पहले सत्ता में रही है, लेकिन पिछले 3 चुनावों से देखे तो उसमें समन्वय की कमी देखी जा रही है। कांग्रेस की गुटबाजी चुनावों में खराब प्रदर्शन का कारण बनती नजर आ रही है। परिणाम यह रहा कि 2012 के चुनाव में कांग्रेस के 41 नगरसेवक थे। तो 2017 में यह घटकर 29 हो गए। इसमें भी कुछ सदस्य ऐसे है जो भाजपा की बी टीम की पहचान बनाए हुए हैं।
एनएमसी में शिवसेना और एनसीपी हमेशा सत्ता में सहभागी रही है। भाजपा के साथ गठबंधन में शिवसेना को उपमहापौर का पद मिला तो कांग्रेस से गठबंधन कर एनसीपी भी उपमहापौर पद पाने में सफल रही थी। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं।
पिछले कुछ सालों में स्थानीय चुनाव में शिवसेना और एनसीपी को गठबंधन में महत्व कम मिल रहा है। इस बीच दोनों दल में टूट के बाद से स्थिति और भी मुश्किल हो गई है। इससे अब शिवसेना और एनसीपी के दोनों गुटों की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। 2017 में शिवसेना के 2 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से 1 नगरसेवक जीते थे, लेकिन अब दोनों दल के दोनों गुट में नगरसेवक के तौर पर किसी का नाम तक प्रमुखता से सामने नहीं आ रहा है।
इस साल होने वाले चुनाव से पहले नागपुर महानगर पालिका में वार्ड व प्रभाग को लेकर स्थिति बदलने की संभावना है। 2012 में जहां 145 नगरसेवक थे तो वहीं 2017 में 151 नगरसेवक हो गए। अब कहा जा रहा है नए परिसीमन के तहत 156 सीटों पर चुनाव होंगे। 2017 में 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति थी। इसके बाद 2019 में महाविकास अघाड़ी की सरकार ने 2 सदस्यीय प्रभाग पद्धति का निर्णय लिया, लेकिन महायुति सरकार ने फिर से 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति को लागू किया है।
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2012 में हुए एनएमसी के चुनाव में 10 निर्दलीय नगरसेवक भी जीत कर आए थे। लेकिन 2017 में केवल एक ही निर्दलीय नगरसेवक जीत हासिल करने में सफल रहा। नागपुर में बसपा के 10 से 12 नगरसेवक जीतते रहे हैं। इस बार भी बसपा अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। ऐसे में छोटे दलों के स्थानीय गठबंधन भी तैयार हो सकते हैं।