दीपा गर्ग (सौजन्य-नवभारत)
Indian Women Triathlete: जीवन में कठिनाइयां जब चरम पर हों तभी इंसान का असली जज्बा सामने आता है। नागपुर की 49 वर्षीय दीपा गर्ग ने यह साबित कर दिखाया है। मध्य रेल नागपुर मंडल के मंडल रेल प्रबंधक विनायक व्यास गर्ग की पत्नी दीपा ने घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ ऐसा कारनामा किया जो युवा खिलाड़ियों के लिए भी प्रेरणा है। उन्होंने अमेरिका के कैलिफोर्निया, सैक्रामेंटो में आयोजित आयरन मैन ट्रायथलॉन पूरा कर लिया। दीपा ने 16 घंटे 43 मिनट में 4 किमी तैराकी, 180 किमी साइक्लिंग और 42 किमी दौड़ पूरी की।
ये वही दीपा हैं जिन्होंने अपनी फिटनेस यात्रा 41 वर्ष की उम्र में शुरू की थी। 45 वर्ष की उम्र में उन्होंने साइकिल चलाना सीखा और 46 वर्ष में तैराकी में महारत हासिल की। उनकी यात्रा आसान नहीं रही। आयरन मैन ट्रायथलॉन की दिशा में उनके पहले 2 प्रयास नाकाम रहे। गोवा में हुए पहले आयरन मैन ट्रायथलॉन 70.3 में वे समय सीमा से सिर्फ 3 मिनट देर से पहुंचीं।
दूसरे प्रयास में समुद्र में जेलफिश ने उनके चेहरे पर वार किया जिससे एक आंख सूजकर बंद हो गई। फिर भी उन्होंने 2 किमी तैराकी, 90 किमी साइक्लिंग और 21 किमी दौड़ पूरी की। दर्द असहनीय था, पर हिम्मत नहीं टूटने दी।
वहीं सैक्रामेंटो में भी चुनौतियां कम नहीं थीं। 17 डिग्री सेल्सियस ठंडे पानी में तैरना, 120 किमी साइक्लिंग के बाद पैरों में ऐंठन और अंतिम 10 किमी में खुद पर संदेह। सब कुछ झेलना पड़ा लेकिन दीपा ने हार नहीं मानी। वे आगे बढ़ती रहीं और तब तक नहीं रुकीं जब तक उनकी घड़ी ने 16:43 नहीं दिखाया। जब फिनिश लाइन पर उन्हें आयरन मैन का मेडल पहनाया गया तो उनके चेहरे पर गर्व और खुशी दोनों झलक रही थी।
उन्होंने साबित किया कि दर्द अस्थायी है लेकिन हार मानना स्थायी है। अब दीपा अगले साल एक और आयरन मैन प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की तैयारी कर रही हैं। 50 की उम्र के करीब पहुंच चुकीं एक ‘सीनियर रेलवे ऑफिसर की वाइफ’ अब ‘आयरन वुमन’ दीपा गर्ग के नाम भी जानी जाती हैं। वे साहस, संकल्प और आत्मविश्वास की मिसाल बन चुकी हैं।
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अपनी इस सफलता पर दीपा ने खुशी जताते हुए कहा कि आयरन वुमन बनना कभी मेरा लक्ष्य नहीं रहा। दिल्ली में रहते हुए हाउसवाइफ के तौर पर यूं ही वॉकिंग शुरू की। फिर वॉकिंग से रनिंग, फिर हाफ मैराथन, फिर फुल मैराथन और अब आयरन मैन रेस तक पहुंचने का केवल एक ही फॉर्मूला रहा।
भागो, चलो, फिर भागो… लेकिन रुको मत। शुरुआत 5 किलोमीटर की छोटी दौड़ से हुई और फिर 2017 में उन्होंने पहला हाफ मैराथन 2 घंटे से भी कम समय में पूरा किया। पति विनायक गर्ग सबसे बड़े प्रेरक बने। उन्होंने और बच्चों ने हमेशा हौसला बढ़ाया। साथ ही, डिसिप्लिन का भी महत्वपूर्ण रोल रहा है।
करीब 4 घंटे की प्रैक्टिस के बाद घर लौटने पर पति ने कभी कड़ा सवाल नहीं पूछा। चोट के दौरान कोच और डॉक्टरों की एडवाइस सख्ती से फॉलो करती रही। उन्होंने कहा कि हर असफलता ने उन्हें अधिक मजबूत बनाया। सुबह-सुबह की दौड़, घर के बाथरूम में आइस बाथ और 200 किमी की एकाकी साइक्लिंग, उनकी तैयारी का हिस्सा रही।