
भोपाल गैस त्रासदी (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Bhopal Gas Tragedy Survivor: 2 दिसंबर 1984 रात 11.20 बजे इतिहास के पन्नों में एक काली रात दर्ज हुई। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कंपनी से लगभग 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हुई जिसने हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया और लाखों लोगों को आजीवन स्वास्थ्य समस्याओं से जूझने को मजबूर कर दिया। उस समय भोपाल में नौकरी कर रहे विदर्भ के मूल निवासी कुशाब कायरकर ने उस रात की खौफनाक यादें ताजा कीं।
कायरकर उस रात 12.45 बजे लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज से जागे। उन्होंने शुरू में सोचा कि शायद कोई दंगा हो गया है। खिड़की खोलकर देखने पर जैसे ही गैस अंदर आई, ज़ोरदार खांसी शुरू हो गई। मेरा दम घुट रहा था। तभी मैंने बाल्टी के पानी में अपना सिर डुबो दिया और बार-बार अपनी नाक पर पानी डाला। इसका फायदा हुआ और मेरी जान बच गई।
2 और 3 दिसंबर 1984 की रात हुई इस दुर्घटना का कारण खराब उपकरण और अप्रशिक्षित कर्मचारियों को माना जाता है। इस त्रासदी में हजारों लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 5 लाख से अधिक लोग स्वास्थ्य समस्याओं और स्थायी विकलांगता से पीड़ित हुए। कायरकर जो 1982 में पुराने भोपाल के पंजाब नेशनल बैंक की शाखा में नौकरी करते थे, ने बताया कि रात 12.45 बजे (कैलेंडर के अनुसार 3 दिसंबर) उनकी आंख खुली।
तीसरी मंजिल पर रहते थे। खिड़की से उन्होंने देखा कि लोगों का हुजूम सुरक्षित स्थानों की ओर भाग रहा था। हर व्यक्ति खांस रहा था, कुछ लोग उल्टियां कर रहे थे और कई अपनी आंखों में हो रही जलन को पोंछते हुए भागे जा रहे थे। पूरी सड़क उल्टियों से भर गई थी। जब मैं नीचे सड़क पर आया तो लोगों ने बताया कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक हुई है। यह सुनकर मेरे पैरों तले की ज़मीन खिसक गई।
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गैस रिसाव रात 11.20 बजे शुरू हुआ और 3 दिसंबर को 2.16 बजे तक यानी मात्र 3 घंटों में जहरीली गैस ने पुराने भोपाल महानगर को अपनी चपेट में ले लिया। भोपाल के हमीदिया अस्पताल और महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज की 1200 बिस्तर की क्षमता रात 1.15 बजे ही पूरी भर गई थी। इस घटना के बाद कायरकर ने जैसे-तैसे भोपाल छोड़ा और अपनी बदली चंद्रपुर करवा ली। उन्होंने कहा कि आज भी उस घटना को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।






