शाह की शह, शिंदे का पलड़ा भारी
Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र की महायुति सरकार में पिछले कुछ दिनों से जारी शक्ति प्रदर्शन के बीच उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का पलड़ा एक बार फिर भारी साबित हुआ है। डीसीएम शिंदे को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का मिला मजबूत समर्थन इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है।
राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से अमित शाह ने फडणवीस और प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण को पीछे हटने का संदेश दिया। इस प्रकार, महायुति में 2019 जैसी स्थिति पुनः बनते हुए दिखाई देती है और अब बेमन से ही सही, बीजेपी को शिंदे की शिवसेना के साथ ही आगामी चुनाव लड़ने होंगे।
2 दिसंबर को हुए नगर परिषद और नगर पंचायत चुनावों में महायुति के प्रमुख घटक दल कई स्थानों पर एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे। विपक्ष की कमज़ोर उपस्थिति के बीच मुख्य मुकाबला शिवसेना (शिंदे गुट), बीजेपी और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजीत पवार गुट) के बीच ही देखने को मिला।
इसी दौरान रवींद्र चव्हाण द्वारा शिंदे की शिवसेना में की गई राजनीतिक सेंध से तनाव और बढ़ गया। शिंदे ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री फडणवीस से की, लेकिन अपेक्षित प्रतिक्रिया न मिलने पर शिंदे और उनके नेताओं ने बीजेपी तथा फडणवीस पर तीखे हमले शुरू कर दिए। इसके बाद डीसीएम शिंदे दिल्ली पहुंचे और उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को स्थिति से अवगत कराया।
सूत्रों के अनुसार, बढ़ती अव्यवस्था और जनता में फैल रहे भ्रम को देखते हुए दिल्ली से महाराष्ट्र बीजेपी नेतृत्व को शिंदे गुट के साथ समन्वय स्थापित करने का स्पष्ट निर्देश मिला। इसी के चलते नागपुर में शीतकालीन सत्र के दौरान मुख्यमंत्री फडणवीस, रवींद्र चव्हाण, डीसीएम शिंदे और अजीत पवार के बीच बैठक हुई।
बैठक के बाद फडणवीस को यह घोषणा करनी पड़ी कि महायुति के भीतर किसी भी दल का पक्ष प्रवेश (Defection) नहीं होगा। शिंदे के खिलाफ अपनी आक्रामकता को सही ठहराने के लिए चव्हाण दिल्ली पहुंचे, लेकिन वहां भी शाह ने उन्हें शिंदे गुट के साथ तालमेल बनाने का सख्त निर्देश देकर वापस भेज दिया। परिणामस्वरूप, दिल्ली से लौटने के बाद चव्हाण का रुख अचानक नरम पड़ गया। गुरुवार रात शिंदे-चव्हाण बैठक के बाद चव्हाण ने अगले दिन आधिकारिक बयान जारी किया कि बीएमसी सहित सभी महानगरपालिका चुनाव महायुति के रूप में ही लड़े जाएंगे।
ठाणे जिले में एकनाथ शिंदे और रवींद्र चव्हाण की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता किसी से छिपी नहीं है। मुंबई की तर्ज पर ठाणे और नई मुंबई में प्रभुत्व स्थापित करने का सपना बीजेपी लंबे समय से देखती आई है। शिवसेना विभाजन के बाद मुंबई में उद्धव ठाकरे कमजोर पड़े, जबकि सत्ता के समर्थन से शिंदे का ठाणे में प्रभाव और बढ़ गया।
बीजेपी ने शिंदे के प्रभाव को संतुलित करने के लिए नवी मुंबई से गणेश नाईक को मंत्री बनाया और रवींद्र चव्हाण को ठाणे जिले का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर उनकी ताकत बढ़ाई। लेकिन मुंबई में उद्धव और राज ठाकरे के संभावित समीकरणों को देखते हुए बीजेपी, फिलहाल शिंदे को अपने साथ रखना ही लाभदायक मान रही है।
इसके चलते अमित शाह ने फडणवीस और चव्हाण की भूमिका पर भी नियंत्रण स्थापित किया है।
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भाजपा के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण ने कहा कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले के साथ हुई संयुक्त बैठक में निर्णय लिया गया कि आगामी स्थानीय निकाय चुनाव महायुति के रूप में ही लड़े जाएंगे। मुंबई सहित सभी महानगरपालिका चुनावों के लिए पार्टी स्तरीय समितियाँ गठित की जाएंगी और सीट-बंटवारे का फार्मूला स्थानीय परिस्थितियों और लोकहित के आधार पर तय किया जाएगा। महाराष्ट्र महायुति में बीजेपी, शिवसेना (शिंदे), राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजीत पवार), आरपीआई और अन्य छोटे घटक दल शामिल हैं।