अल्ट्राटेक प्लांट अनिश्चितकाल के लिए बंद (सौजन्यः सोशल मीडिया)
महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले में स्थित अल्ट्राटेक सीमेंट का अंवारपुर प्लांट अब अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गया है। यह कोई तकनीकी बाधा नहीं, बल्कि स्थानीय किसानों, श्रमिकों और ग्रामवासियों की आवाज़ का परिणाम है, जो वर्षों से उपेक्षा का शिकार होते आ रहे थे। जब उनकी बातें नहीं सुनी गईं, तो उन्होंने आवाज़ उठाई और आखिरकार, देश के सबसे बड़े सीमेंट समूहों में से एक को घुटने टेकने पड़े।
बता दें कि स्थानीय श्रमिकों को समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा था, संविदा कर्मचारियों के वेतन कई महीनों से लंबित थे। प्लांट से निकलने वाली धूल और प्रदूषण से ग्रामवासियों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा था। किसानों का आरोप था कि प्लांट निर्माण के समय जिन ज़मीनों का अधिग्रहण हुआ, उसका पूरा मुआवज़ा आज तक नहीं दिया गया। कंपनी की कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) योजनाएं केवल कागजों तक सीमित रह गई थीं, न शिक्षा, न स्वास्थ्य, न विकास।
लगातार हो रहे प्रदर्शन, भूख हड़ताल और जन समर्थन को देखते हुए अल्ट्राटेक प्रबंधन ने उत्पादन कार्य तत्काल प्रभाव से बंद करने का निर्णय लिया। कंपनी ने एक बयान में कहा, “सुरक्षा कारणों और कामकाज में व्यवधान की स्थिति को देखते हुए प्लांट को अस्थायी रूप से बंद किया जा रहा है।”
श्रमिक संगठनों और ग्रामीण प्रतिनिधियों ने जिला कलेक्टर और स्थानीय प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की। अधिकारियों ने कंपनी और आंदोलनकारियों के बीच मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू की। प्रारंभिक सहमति के तहत संविदा श्रमिकों को लंबित वेतन जल्द दिया जाएगा। किसानों के मुआवज़े की जांच और पुनर्मूल्यांकन शुरू किया गया है। प्रदूषण नियंत्रण और सीएसआर गतिविधियों पर निगरानी समिति बनाई जाएगी।
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इस प्लांट में हज़ारों परिवारों की आजीविका जुड़ी हुई थी। बंदी से स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है। रोज़गार ठप हो गए हैं और सबसे अहम लोगों का उद्योगों पर से विश्वास डगमगाया है। कंपनी को अब स्थानीय समुदाय के विश्वास को पुनः अर्जित करना होगा। यदि श्रमिकों और किसानों की मांगों पर उचित कार्रवाई नहीं हुई, तो यह संकट और गहरा सकता है।
सरकार को चाहिए कि वह ऐसे संवेदनशील औद्योगिक विवादों में तटस्थ नहीं, सक्रिय भूमिका निभाए।
यह सिर्फ एक प्लांट का बंद होना नहीं है यह उस आम आदमी की जीत है, जिसकी आवाज़ें अक्सर चुप करा दी जाती हैं। यह घटना एक सबक है कि विकास तभी टिकाऊ होता है, जब वह सामाजिक न्याय और पारदर्शिता के साथ किया जाए।