झोपड़पट्टियों में मूलभूत बुनियादी सुविधाओं की कमी (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Mumbai News: गलियों में अंधेरा, बजबजाती नालिया, जगह जगह कचरों का ढेर, सार्वजनिक शौचालयों में टॉयलेट के लिए लंबी कतारें। यह मुंबई की झोपड़पट्टियों की पहचान है। एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी के पुनर्विकास प्रकल्प से धारावी के झोपड़पट्टीवासियों को भले ही उम्मीदें जगी हो, लेकिन मुंबई की करीब 5500 झोपड़पट्टियों में मूलभूत बुनियादी सुविधाओं की कमी है। इन झोपड़पट्टियों का जीवन शहरीकरण के नाम पर दम तोड़ रही है। झोपड़पट्टीयों की सकरी गलियां, चारों तरफ गंदगी का आलम, घरों में बीमार पड़े लोग और शिक्षा से वंचित बच्चे नियोजित विकास से कोसों दूर हैं।
कांदिवली (पूर्व) में दामू नगर, यादव नगर, गोरेगांव ( पश्चिम ) प्रेम नगर, वडाला के संगम नगर, भांडूप (पश्चिम) क्षेत्र का पहाड़ी क्षेत्र, हीरानंदानी का पहाड़ी क्षेत्र, चांदिवली, वरली कोलीवाड़ा, महालक्ष्मी सात रास्ता, एनटॉप हिल, जोगेश्वरी आदि मुंबई की बड़ी झोपड़पट्टियां हैं, जहां एक बड़ी आबादी न सिर्फ न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है, बल्कि लोग स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए निजी क्षेत्र की महंगी सुविधाओं पर निर्भर हैं। देश की शहरी आबादी करीब 29% झुग्गी झोपड़ियों में रहती है। 2011 जनगणना के आंकड़ों से पहली बार शहरों की तरफ झुकाव बढ़ा दिखा।
नेशनल कमीशन ऑन पॉपुलेशन का अनुमान है कि 2036 तक 38.6 फीसदी भारतीय शहरी इलाकों में रहेंगे यानी तब 60 करोड़ लोगों का बसेरा इनमें हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक भारत में शहरी आबादी 46.1 करोड़ से बढ़कर 87.7 करोड़ यानी दोगुनी हो जाएगी। कोरोना महामारी के बाद गांवों से शहरों की ओर पलायन धीमा हुआ है। ग्रामीण से शहरी प्रवास दर 2011 के 37.6% से घटकर 2023 में 28.9% हुई। वैसे अब सिर्फ गांवों से शहर की ओर ही नहीं बल्कि शहर से गांव की तरफ भी प्रवास बढ़ रहा है।
चुनाव के समय झोपड़पट्टियों का विकास कार्य राजनैतिक दलों के लिए चुनावी मुद्दा बना रहता है। मुंबई शहर को झोपड़पट्टी मुक्त बनाने के कई सरकारों ने इस दिशा में काम की है लेकिन रीडिवेलपमेंट कानून के प्रभावी ढंग से लागू होने के कारण सफलता नहीं मिल सकीं। मुंबई में करीब 513 जगहों पर एसआरए ( स्लम रिहैबिलिटेशन अथॉरिटी) के अंतर्गत बिल्डिगों का काम हो रहा है, लेकिन कई जगहों पर बिल्डिंग का काम रुका पड़ा है। कई प्रोजेक्ट के निर्माण में रहिवासी अपना झोपड़ा तो दे दिए लेकिन अब बिल्डिंग का निर्माण कार्य अधूरा रहने से वे बेघर हो गए हैं। रहिवासी को दूसरे स्थान पर रहने के लिए बिल्डर भाड़ा देता था, उसे भी बंद कर दिया गया है।
झोपड़पट्टीवासी कई बार ऐसे डिवेलपर से परेशान होते हैं, जो काम करने का इरादा नहीं रखते और लंबे समय तक प्रोजेक्ट को अटकाएं रखते हैं। इससे कमजोर तबके के लोगों को दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। झोपड़पट्टीयों को हटाकर वहां रहने वालों को पक्के मकान देना एसआरए की जिम्मेदारी है। एसआरए का मुख्य उद्देश्य झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों को पक्के, सुरक्षित और अच्छे घर देना है। इन घरों में जरूरी सुविधाएं होती हैं और रहने लायक अच्छा माहौल होता है, जिससे लोग सम्मान के साथ जिंदगी जी सकें। महाराष्ट्र सरकार ने अभी हाल में गृह निर्माण नीति 2025 को मंजूरी दी है। इस नीति का मकसद है वर्ष 2030 तक हर जरूरतमंद परिवार को एक मजबूत, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल घर देना है। इस काम में एसआरए की बहुत बड़ी भूमिका होगी। मुंबई को झोपड़पट्टी मुक्त बनाने का लक्ष्य निजी डिवेलपर की जवाबदेही तय किये बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।
भाजपा झोपड़पट्टी मोर्चा अध्यक्ष आर.डी. यादव ने कहा कि सरकार ने झोपड़पट्टियों के विकास के लिए कई योजनाओं को लागू किया है। कई झोपड़पट्टियों में शौचालय की व्यवस्था बेहद खराब थी जिसे ठीक किया गया। एसआरए के घर बेचने की 10 वर्ष के समय सीमा को 5 वर्ष किया गया है। झोपड़ा धारकों का आधार लिंक कराया जा रहा है इससे एसआरए योजनाओं में दुरूपयोगिता रुकेगी। सरकार ने गृह निर्माण नीति 2025 को मंजूरी दी है इससे महिलाओं, छात्रों और बुजुर्गों के लिए बनाए जाने वाले खास घरों में एसआरए की जिम्मेदारी बढ़ गई है। इस योजना का लाभ सीधे जनता को पहुंचेगा।
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वरली के महालक्ष्मी सोसायटी के पूर्व मुख्य प्रवर्तक जितेन्द्र कनौजिया ने कहा कि एसआरए की ढिलाई की वजह से वरली में हजारों झोपड़पट्टीवासी कई वर्षों से परेशान हैं। लोगों को किराया नहीं मिल रहा है, एसआरए सिर्फ लीपापोती कर दिखावे की कार्रवाई करता है। बिल्डरों पर सख्ती बिल्कुल नहीं कर रहा है। एसआरए अधिकारी स्थानीय विधायक, सांसद, बिल्डरों की गोद में बैठे हैं। हजारों झोपड़पट्टीवासी व उनके परिवार रामभरोसे जीवनयापन कर रहे हैं।
मालाड की मिथिला धाम वेलफेयर सोसाइटी के सेक्रेटरी मुराद हिंदुस्तानी ने कहा कि शहरीकरण का बढ़ना अच्छी बात है, लेकिन यह अपने साथ कई चुनौतियां भी लेकर आया है। मुंबई की झोपड़पट्टियों में साफ़ सफाई के साथ पीने के पानी की भारी दिक्कत है। नलों में जो पानी आ रहा है वह प्रदूषित है जिससे लोग बीमार हो रहे हैं। बीएमसी के अधिकारी कभी भी इन शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेते है जिससे स्थिति और खराब हो रही है।