शिवसेना नेता संजय निरुपम (सोर्स: सोशल मीडिया)
Sanjay Nirupam On Bihar Politics: शिवसेना के प्रवक्ता संजय निरुपम ने राष्ट्रीय सुरक्षा, बिहार की राजनीति और धार्मिक सद्भाव से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी है। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा नक्सलवाद के खिलाफ उठाए गए कदमों की सराहना की। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए तीखा हमला बोला। साथ ही, उन्होंने निजामुद्दीन दरगाह में सद्भाव के कार्यक्रमों पर आपत्ति जताने वाले तत्वों को समाज तोड़ने वाला करार दिया।
निरुपम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने नक्सलवाद को समाप्त करने पर बात की थी। शिवसेना प्रवक्ता ने इस बात के लिए केंद्र सरकार को बधाई दी कि देश नक्सलवादी आतंकवाद को अंतिम पड़ाव पर पहुंचाने के करीब है।
संजय निरुपम ने बताया कि जब 2014 में सरकार बनी थी, तब देश के लगभग 125 जिले नक्सलवाद से प्रभावित थे। निरुपम के अनुसार, लगातार 11 वर्षों के प्रयासों के कारण अब नक्सलवाद में भारी कमी आई है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार का लक्ष्य मार्च 2026 तक पूरे भारत को नक्सलवाद से मुक्त करना है, और इस दिशा में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में नक्सलियों के आत्मसमर्पण ने सफलता की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि सरकार संविधान की मर्यादा का पालन करते हुए विकास और शांति स्थापित करने की दिशा में अंतिम चरण में है।
शिवसेना नेता निरुपम ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पर निशाना साधते हुए बिहार की राजनीति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने आरोप लगाया कि लालू यादव के करीबी और सिवान-छपरा क्षेत्र में आतंक का पर्याय रहे कुख्यात गैंगस्टर शहाबुद्दीन ने पूर्व में भय और हिंसा का माहौल बनाया था।
निरुपम ने आलोचना की कि अब आरजेडी ने उसी शहाबुद्दीन के बेटे को टिकट दिया है, जो अपने पिता के समान ही भाषा और रवैया अपनाता है। उन्होंने चेताया कि अगर ऐसे लोगों को मौका दिया गया तो बिहार में एक बार फिर आतंक और गुंडागर्दी लौट आएगी।
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उन्होंने छपरा और सिवान के मतदाताओं से अपील की कि वे कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपराधी मानसिकता वाले उम्मीदवारों को पूरी तरह अस्वीकार कर दें।
निजामुद्दीन दरगाह में हुए ‘जश्न-ए-चरागा’ विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए निरुपम ने कहा कि यह दरगाह वह स्थान है जहां सदियों से हिंदू और मुसलमान एक साथ आते रहे हैं। उन्होंने जोर दिया कि लगभग हजार साल पुरानी इस दरगाह का इतिहास आपसी सद्भाव और सूफी परंपराओं से मजबूती से जुड़ा हुआ है।
निरुपम ने याद दिलाया कि सूफी संतों ने हमेशा हिंदू परंपराओं का सम्मान किया, और कई मुस्लिम शासकों ने हिंदू ग्रंथों का अनुवाद करवाकर उनके विचारों का प्रचार किया था। इसलिए, यदि कोई संगठन दरगाह में दीपावली या परस्पर सद्भाव का कार्यक्रम आयोजित करने पर आपत्ति जताता है, तो यह केवल कट्टरपंथ को बढ़ावा देने और समाज को बांटने की एक सोची-समझी साजिश है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)