मुंबई लोकल (pic credit; social media)
Railway Zero Mortality Rate Campaign: मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेनें को मौत का सफर साबित हुईं। रेलवे पुलिस के मुताबिक, उपनगरीय रेल पटरियों पर महज 24 घंटे में 15 यात्रियों की जान चली गई। यह आंकड़ा किसी एक दिन में दर्ज हुई मौतों का अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है।
रेल मंत्रालय जहां ‘मिशन जीरो डेथ्स’ अभियान चला रहा है, वहीं मंगलवार को हुई यह घटनाएं इस अभियान की गंभीर विफलता को उजागर करती हैं। प्रतिदिन मध्य और पश्चिम रेलवे पर 67 से 68 लाख यात्री यात्रा करते हैं, लेकिन हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे। औसतन रोजाना छह से सात मौतें दर्ज होती हैं, मगर मंगलवार का आंकड़ा इस औसत से दोगुना से भी ज्यादा रहा।
रेलवे प्रशासन इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। मुंबई रेलवे विकास निगम (MRVC) की MUTP-3 परियोजना के तहत 551 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन नतीजे बेहद निराशाजनक हैं। यात्रियों को जागरूक करने के लिए चलाए जा रहे अभियान भी असरदार साबित नहीं हो रहे।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यात्रियों का दरवाजों पर लटककर सफर करना, पटरियों को पार करने की जल्दबाजी और प्लेटफॉर्म पर भीड़ हादसों की सबसे बड़ी वजह है। खासकर सुबह और शाम के पीक ऑवर में यात्री अपनी जान जोखिम में डालकर ट्रेन पकड़ने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से पटरियों पर आए दिन खून बह रहा है।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा उपायों को और सख्त किया जाएगा। पैदल पुलों, सबवे और बैरिकेड्स पर निगरानी बढ़ाई जाएगी। वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक यात्रियों को अनुशासन और सुरक्षा नियमों का पालन करने के लिए मजबूती से जागरूक नहीं किया जाता, तब तक ऐसी मौतें थमती नजर नहीं आतीं। मंगलवार का यह हादसा रेलवे और सरकार दोनों के लिए बड़ा चेतावनी संकेत है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद मुंबई लोकल में ‘सुरक्षित सफर’ अब भी दूर की कौड़ी बना हुआ है।