केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी (सोर्स: सोशल मीडिया)
National Widow Rights Commission Demand: देश में विधवा महिलाओं को आज भी सामाजिक बहिष्कार और संपत्ति के अधिकारों से वंचित किए जाने जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। महात्मा फुले समाज सेवा मंडल (एमपीएसएसएम) ने केंद्र सरकार से मांग की है कि विधवाओं के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय बनाया जाए।
‘सिस्टम’ और समाज की बेरुखी से सुरक्षा की अपील महाराष्ट्र स्थित स्वयंसेवी संगठन, महात्मा फुले समाज सेवा मंडल (एमपीएसएसएम) ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक महत्वपूर्ण ज्ञापन भेजा है। इस प्रस्ताव में विधवा महिलाओं को उस “प्रणालीगत और आजीवन होने वाले अन्याय” से बचाने की मांग की गई है, जो उन्हें समाज के हाशिए पर धकेल देता है।
संगठन का कहना है कि भारत में विधवाओं को न केवल सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है, बल्कि वे मानसिक आघात, यौन शोषण के खतरे और आर्थिक असुरक्षा के बीच जीवन जीने को मजबूर हैं। अक्सर उन्हें उनके वैध संपत्ति और उत्तराधिकार के अधिकारों से भी बेदखल कर दिया जाता है।
मौजूदा व्यवस्थाओं में सुधार की जरूरत संस्था के अध्यक्ष प्रमोद झिंजाडे के अनुसार, हालांकि देश में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर महिला आयोग कार्यरत हैं, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र इतना व्यापक है कि वे विधवाओं से जुड़े विशिष्ट और संवेदनशील मुद्दों पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। इस कारण शिकायत निवारण, निगरानी और जवाबदेही के स्तर पर बड़ी खामियां रह जाती हैं। ज्ञापन में तर्क दिया गया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत हर नागरिक को समानता और गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी दी गई है, फिर भी विधवाओं के लिए कोई पृथक वैधानिक निकाय मौजूद नहीं है।
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वैश्विक स्तर पर भी शुरू हुई पहल विधवाओं की सुरक्षा को एक “संवैधानिक आवश्यकता और नैतिक दायित्व” बताते हुए प्रमोद झिंजाडे ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उठाया है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (UN) को पत्र लिखकर ‘अंतरराष्ट्रीय विधवा अधिकार आयोग’ (IWRC) के गठन की मांग की है। संगठन का मानना है कि एक समर्पित आयोग के आने से न केवल पिछड़ी सामाजिक प्रथाओं को समाप्त करने में मदद मिलेगी, बल्कि विधवाओं के मानवाधिकारों की बहाली भी सुनिश्चित हो सकेगी।
यह मांग उस विशेष उपचार केंद्र की तरह है, जिसकी जरूरत एक गंभीर बीमारी को ठीक करने के लिए होती है; क्योंकि एक सामान्य अस्पताल (सामान्य आयोग) हर मर्ज का इलाज तो करता है, लेकिन कुछ जटिल बीमारियों के लिए विशेषज्ञों की एक अलग टीम की आवश्यकता होती है।