मुंबई कोस्टल रोड प्रोजेक्ट (सोर्स: सोशल मीडिया)
Mumbai Infrastructure Development News: 26.5 किलोमीटर लंबे मुंबई कोस्टल रोड परियोजना के लिए बीएमसी ने क्षेत्र में कुल 60,000 मैंग्रोव पेड़ों में से 45 हजार मैंग्रोव पेड़ो को चिंहित किया है जिसमें से केवल 9,000 पेड़ों को पूरी तरह काटा जाएगा, जबकि शेष बचे 36 हजार राज्य के विभिन्न इलाके में स्थानांतरित किया जाएगा।
बता दें कि मुंबई जैसे तटीय शहर के लिए मैंग्रोव वन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये तटीय कटाव, ज्वार-भाटा से होने वाली बाढ़ और तूफानी लहरों से आकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। इनकी घनी जड़ें मिट्टी को स्थिर रखती हैं और लहरों के अभाव को कम करती हैं।
मुंबई के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर बड़े मैग्रोव क्षेत्र मौजूद हैं, जिन्हें मैंग्रोव जोन घोषित किया गया है। हालांकि, अतिक्रमण और बुनियादी ढांचे के विकास के कारण पिछले कुछ दशकों में इनकी घनता में कमी आई है। 20,000 करोड़ रुपये की यह परियोजना मुंबई में उत्तर-दक्षिण यात्रा को पूरी तरह बदल देगी। इसके तहत मरीन ड्राइव और वर्ली के बीच मौजूद 10 किलोमीटर लंबे तटीय मार्ग को एमएमआर क्षेत्र से जोड़ा जाएगा। इस परियोजना के लिए बीएमसी प्रशासन ने वर्ष 2028 की समय-सीमा तय की है। इसमें सुरंगों, पुलों और एलिवेटेड कॉरिडोरों का निर्माण शामिल है।
बीएमसी अधिकारियों ने बताया कि अदालत से अनुमति मिलना इस परियोजना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। अब आदेश मिलने के बाद मशीनरी की आवाजाही सहित खुदाई कार्य शुरू किया जाएगा, हाई कोर्ट के आदेश के बाद बीएमसी अब कार्य शुरू करने के लिए राज्य के वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू करेंगी।
इस परियोजना से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चूंकि कार्य मैग्रीव क्षेत्रों में किया जाना है, इसलिए वन विभाग से अंतिम अनुमति लेना अनिवार्य है। यह अनुमति अदालत की मंजूरी के बाद ही जारी की जानी थी। अधिकारी ने कहा कि इस महीने के भीतर अनुमति मिलने की उम्मीद है और दिसंबर के अंत या जनवरी के पहले सप्ताह तक कार्य शुरू हो जाएंगे।
अधिकारियों के अनुसार, पहले चरण में उन सभी स्थलों की पहचान की जाएगी जहां बड़े पैमाने पर खुदाई की जाएगी, जिनमें पुलों के खंभे खड़े किए जाने वाले स्थान भी शामिल है। इसके बाद सड़कों के संरेखण और भूमि क्षेत्रों की पहचान की जाएगी, जिनके नीचे या ऊपर उपयोगिता सेवाएं मौजूद है। बिजली के केबल, गैस पाइपलाइन जैसी उपयोगिता सेवाओं को वैकल्पिक स्थानों पर स्थानांतरित किया जाएगा ताकि आपूर्ति बाधित न हो।
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एक अधिकारी ने बताया कि परियोजना स्थल को दो भागों में बांटा जाएगा एक भाग में वास्तविक निर्माण कार्य जैसे खंभों का निर्माण और सुरंगों की खुदाई होगी, जबकि दूसरे भाग को ‘प्रभाव क्षेत्र” (इन्फ्लुएंस जोन एरिया) के रूप में विकसित किया जाएगा, जहां अस्थायी ढांचे बनाए जाएंगे। अनुमति देते समय हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस याचिका को 10 वर्षों तक लंबित रखेगा, जिससे बीएमसी को प्रतिवर्ष प्रतिपूरक वृक्षारोपण की प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का अवसर मिलेगा।