
हर्षवर्धन सपकाल (सौ. सोशल मीडिया )
Maharashtra Local Body Election: महाराष्ट्र की राजनीति में अब कांग्रेस शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साए से उबर कर नई राह पर चलने के लिए तैयार है। हालांकि कांग्रेस ने सबका साथ दिया।
कांग्रेस से अलग होने के बावजूद वह शरद पवार की राकां के साथ वर्षों गठबंधन में रही। वहीं साल 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना से छत्तीस का आंकड़ा होने के बावजूद उद्धव ठाकरे को राज्य का सीएम बनाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन इस बार के महानगरपालिका चुनाव में सहयोगी दलों ने कांग्रेस को अकेला छोड़ दिया।
उद्धव ने राज ठाकरे से गठबंधन करने के बाद शरद पवार की पार्टी को साथ लिया, लेकिन कांग्रेस से दूरी बना ली। ऐसे समय में महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने वंचित आघाड़ी के प्रकाश आंबेडकर व राष्ट्रीय समाज पक्ष के महादेव जानकर के साथ गठबंधन कर राज्य में नए गठबंधन की नींव रख दी।
ठाकरे व पवार के साथ रहने की वजह से कांग्रेस अपने डिसीजन नहीं ले पा रही थी। इस वजह से कांग्रेस अपनी स्वतंत्र आवाज खो बैठी, ऐसी भावना कार्यकर्ताओं से लेकर कोर नेताओं में थी। लेकिन आज यह स्थिति धीरे-धीरे बदलती दिख रही है और इस बदलाव का नेतृत्व हर्षवर्धन सपकाल कर रहे हैं।
सपकाल ने कांग्रेस को केवल “गठबंधन का एक घटक बनने की सीमा से बाहर निकालने का प्रयास शुरू किया है। साथ ही संदेश दिया कि गठबंधन जरूरी हो सकता है, लेकिन आत्मसमर्पण नहीं। यह नया गठबंधन कांग्रेस की वैचारिक पहचान, संगठनात्मक शक्ति और सामाजिक आधार को फिर से खड़ा करने की दिशा में बड़ा कदम है। साथ 2029 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए रोडमैप भी तैयार किया है।
कांग्रेस के कोर नेताओं का कहना है कि हाल के समय में ठाकरे बंधुओं द्वारा आपसी गठबंधन और पवार काका-भतीजे के कुछ स्थानों पर साथ आने से राजनीतिक गणित साधते हुए कांग्रेस को घेरने, उसे अलग-थलग करने के प्रयास हुए, महाविकास आपाडी के भीतर दबाव की राजनीति में कांग्रेस को हाशिये पर धकेलने की कोशिश छिपी नहीं रहीं।
लेकिन हर्षवर्धन सपकाल ने इस दवाव के आगे झुकने के बजाय एक अलग ही दिशा चुनी। महादेव जानकर और प्रकाश आंबेडकर को साथ लेकर उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस केवल महाविकास आघाडी के सहयोगी दलों पर निर्भर नहीं है।
समान विचारधारा वाले दलों को साथ लेकर, नए सामाजिक और राजनीतिक समीकरण खड़े कर कप्तीस अपनी ही ताकत पर आगे बढ़ सकती है। यह उन्होंने राष्ट्रीय समाज पार्टी और वचित बहुजन आघाडी को साथ लेकर व्यवहार में सिद्ध किया है।
इस नए राजनीतिक समीकरण की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता मराठा, ओबीसी, दलित और पारंपरिक मुस्लिम समाज को एक साथ लाने का प्रयास है। महाराष्ट्र की प्रगतिशील राजनीतिक परंपरा में इन सामाजिक घटकों ने हमेशा निर्णायक भूमिका निभाई है, लेकिन हाल के वर्षों में यहीं वर्ग असतुष्ट, बिखरे हुए और राजनीतिक रूप से उपेक्षित महसूस कर रहे थे।
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कांग्रेस की वह नई दिशा उस असंतोष को राजनीतिक आवाज देने की कोशिश करती है। जय महाराष्ट्र फिर एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, तब कांग्रेस की स्वायत्तता और आत्मविश्वास का यह प्रयोग कितना टिकता है। इस पर सभी की नजर है। लेकिन एक बात साफ है, कांग्रेस अब केवल दबाव में टिके रहने वाला दल नहीं, बल्कि अपनी दिशा स्वयं तय करने वाली राजनीतिक शक्ति बनने की कोशिश कर रही है।






