नवी मुंबई आवास घोटाला (pic credit; social media)
Housing scam in Navi Mumbai: नवी मुंबई में आवासीय परियोजनाओं के निर्माण के दौरान आम जनता के लिए आरक्षित घर न देने का बड़ा मामला सामने आया है। नियमों के अनुसार हर डेवलपर को अपनी परियोजनाओं में 20 प्रतिशत घर आम जनता के लिए आरक्षित करना अनिवार्य है। लेकिन 2017 से 2022 के बीच नवी मुंबई में बनी कई हाउसिंग परियोजनाओं में यह नियम तोड़ा गया और गरीबों को उनके हक के घर नहीं दिए गए।
विधान परिषद सदस्य विक्रांत पाटिल ने मानसून सत्र में यह गंभीर मुद्दा उठाया। उन्होंने खुलासा किया कि कुल 791 घर ऐसे हैं जिन्हें सिडको को हस्तांतरित नहीं किया गया। इस खुलासे के बाद सरकार हरकत में आई और विधानसभा अध्यक्ष राम शिंदे की अध्यक्षता में हुई बैठक में बड़ा निर्णय लिया गया।
बैठक में तय हुआ कि संबंधित 11 डेवलपर्स की परियोजनाओं को अधिभोग प्रमाणपत्र यानी ओसी जारी नहीं किया जाएगा। साथ ही इस पूरे प्रकरण की एसआईटी जांच भी शुरू की जाएगी। यानी अब डेवलपर्स पर कड़ी कार्रवाई होगी और गरीबों के हक का हिसाब लिया जाएगा।
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दरअसल राज्य सरकार ने नवंबर 2013 को आदेश जारी किया था कि 10 लाख या उससे अधिक आबादी वाले महानगरों में यदि 4000 वर्ग मीटर से अधिक जमीन पर परियोजना बनाई जाती है तो 20 प्रतिशत घर गरीब और आम जनता के लिए आरक्षित रखना जरूरी है। इसके बावजूद नवी मुंबई में कई बिल्डरों ने इस नियम को दरकिनार कर निर्माण किया।
आरोप है कि डेवलपर्स ने अपने निर्माण परमिट में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों के लिए घर दिखाए लेकिन वास्तविकता में इन्हें उपलब्ध ही नहीं कराया। इतना ही नहीं, कुछ बिल्डरों ने इसके लिए यूडीसीपीआर-2020 की धारा 3.8.4 का सहारा लेकर नियमों को तोड़ने की कोशिश की।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि इस जांच से बड़ा हाउसिंग घोटाला उजागर हो सकता है। यदि यह साबित हुआ कि गरीबों को योजनाबद्ध तरीके से घरों से वंचित किया गया है तो संबंधित डेवलपर्स पर न केवल ओसी रोकी जाएगी बल्कि अन्य कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी।
नागरिकों का कहना है कि यह फैसला सही दिशा में कदम है क्योंकि इससे गरीबों को न्याय मिलेगा और डेवलपर्स पर लगाम कसेगी। अब सबकी निगाहें एसआईटी की रिपोर्ट पर हैं जिससे सच सामने आ सकेगा।