सीएम फडणवीस, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे (pic credit; social media)
Hindi Controversy: महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी पढ़ाने को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर राजनीति को गरमा दिया है। हाल ही में जारी सरकारी निर्णय (जीआर) के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने हिंदी की अनिवार्यता का कड़ा विरोध किया था। विपक्ष के दबाव के बाद राज्य सरकार को यह जीआर रद्द करना पड़ा। लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट किया था कि इस मुद्दे पर आगे का रास्ता तय करने के लिए विशेषज्ञों की राय ली जाएगी।
इसी क्रम में शुक्रवार को सरकार ने समिति का गठन कर उसके सदस्यों की घोषणा की। इस समिति की अध्यक्षता राज्यसभा सांसद और शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे। समिति में भाषा सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सदानंद मोरे, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक डॉ. वामन केंद्र, पुणे की शिक्षाविद् डॉ. अपर्णा मैरिस, डेक्कन कॉलेज, पुणे की भाषा विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. सोनाली कुलकर्णी-जोशी, छत्रपति संभाजीनगर की शिक्षाविद् डॉ. मधुश्री सावजी, पुणे के बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. भूषण शुक्ला और समग्र शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक संजय यादव को शामिल किया गया है।
सरकार की ओर से कहा गया है कि यह समिति तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। रिपोर्ट में यह सुझाव दिया जाएगा कि त्रिभाषी नीति के अंतर्गत हिंदी पढ़ाने को किस तरह लागू किया जाए और इसमें क्या संशोधन संभव हैं।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि स्कूलों में हिंदी पढ़ाए जाने का निर्णय महाविकास आघाड़ी सरकार के समय लिया गया था। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अब उद्धव ठाकरे इसका विरोध कर रहे हैं, जबकि यह फैसला उन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। फडणवीस ने व्यंग्य करते हुए कहा कि उद्धव ‘गजनी’ फिल्म की तरह भूलने की बीमारी से ग्रस्त दिखते हैं।
उधर, हिंदी विवाद के कारण उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे करीब 20 साल बाद एक ही मंच पर नज़र आए थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आगामी बीएमसी चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है। समिति की रिपोर्ट आने तक इस पर राजनीतिक बहस तेज़ रहने की संभावना है।