सुप्रीम कोर्ट ने बुर्का-हिजाब विवाव पर सुनाया फैसला (फोटो: सोशल मीडिया)
मुंबई. चेंबूर स्थित आर्चाया कॉलेज में हिजाब पर बैन से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं को बड़ी राहत दी है। कर्नाटक के उडुपी से शुरू हुआ ‘बुर्का विवाद’ मुंबई के एन जी आर्चाया कॉलेज में देखने को मिला। छात्राओं को हिजाब, बुर्का, नकाब और स्कार्फ पहनकर परिसर में एंट्री करने से रोक दिया गया था। छात्राओं और अभिभावकों के विवाद और काफी हंगामे के बाद मामला सड़क से अदालत तक पहुंच गया था। ‘चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी’ की तरफ से बुर्के पर पाबंदी लगने के बाद छात्राओं ने पहले बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन वहां से मायूसी मिलने के बाद वो देश के उच्चतम न्यायालय के चौखट पर पहुंची और उन्हें वहां से उन्हें बड़ी राहत मिली है। कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम छात्राओं में ख़ुशी का माहौल देखा जा रहा है।
गौरतलब है कि, कॉलेज परिसर में बुर्के में नो एंट्री और हंगामे के बाद छात्राओं ने मुस्लिम लीडरों से मुलाकात कर मामले में हस्तक्षेप करने और इस ज्यादती पर आवाज उठाने की मांग की थी। हालांकि कॉलेज प्रशासन की ओर से एक ही रटा-रटाया जवाब था कि, कॉलेज में ड्रेस कोड लागू किया गया है और नियमों के बारे में अभिभावकों को पहले ही बता दिया गया था।
बता दें कि, मानखुर्द, गोवंडी और शिवाजी नगर के करीब स्थित एनजी आचार्य कॉलेज में तकरीबन 8 से 9 हजार छात्र है। जिनमें से लगभग 5 हजार लड़कियां है और इनमे से करीब 50 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएं है जो यहां तालीम हासिल करती है। इसके बाद 9 मुस्लिम छात्राओं ने अपने माता-पिता की मदद से अदालत तक पहुंची और लंबी लड़ाई के बाद उन्हें कामयाबी हासिल हुई है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्वेस और वकील अबिहा जैदी ने कहा कि प्रतिबंध के कारण छात्राएं कक्षाओं में शामिल नहीं हो पा रही हैं और इससे इनकी शिक्षा पर असर पड़ रहा है।
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पीठ ने मुस्लिम छात्राओं के लिए ‘ड्रेस कोड’ को लेकर उत्पन्न हुए नये विवाद के केंद्र में आए कॉलेज प्रशासन से कहा कि छात्राओं को यह चयन करने की आजादी होनी चाहिए कि वे क्या पहनें। कॉलेज उन पर दबाव नहीं डाल सकता। हालांकि पीठ ने कहा कि छात्राओं को कक्षा के अंदर बुर्का पहनने की अनुमति नहीं दी जा सकती और न ही परिसर में किसी भी धार्मिक गतिविधि की अनुमति दी जा सकती है।
न्यायालय ने एजुकेशनल सोसायटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील माधवी दीवान से पूछा कि क्या छात्रों के नाम से उनकी धार्मिक पहचान उजागर नहीं होती? पीठ ने कहा कि, उसके अंतरिम आदेश का किसी के द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए और किसी भी दुरुपयोग के मामले में ‘एजुकेशनल सोसायटी’ और कॉलेज को अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी है।
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याचिकाकर्ता छात्रा अंजुम सईद खान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से मिली रिलीफ से हम बहुत खुश है,उम्मीद है कि आगे फैसला भी हमारे हक़ में आएगा। हालांकि हमें बॉम्बे हाई कोर्ट से मायूसी मिली थी। यह फैसला सभी छात्राओं के लिए राहत भरा है। इस इसमें हमारे पेरेंट्स ने भी बहुत मदद की है।
हाई कोर्ट के वकील अल्ताफ खान ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुस्लिम छात्राओं के हित में अंतरिम फैसले का स्वागत है। यह मौलिक अधिकारों की कसौटी पर निजता,चयन और शिक्षा के अधिकार की जीत है। कोर्ट ने लोगों में उम्मीद कायम रखी है।