जीआर रद्द किया पर ठाकरे पर फोड़ा ठीकरा (सौजन्यः सोशल मीडिया)
मुंबई: मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूरे घटनाक्रम को साक्ष्यों के साथ पेश किया। उन्होंने कहा कि त्रिभाषी फार्मूला अपनाने का फैसला तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने लिया था और यह उनके समय में ही लिया गया था। साथ ही उन्होंने कहा कि वे राज्य सरकार के 16 अप्रैल 2025 और 17 जून 2025 के दोनों सरकारी आदेशों को रद्द कर रहे हैं।
उन्होंने घोषणा की कि त्रिभाषी फार्मूले को लेकर वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जा रही है। इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार मौजूद थे। इस समिति में कुल 18 सदस्य शामिल है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूरा घटनाक्रम बताया। उन्होंने कहा कि 21 सितंबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त करने का फैसला किया। 16 अक्टूबर 2020 को राज्य सरकार ने जीआर जारी किया।
इस टास्क फोर्स के अध्यक्ष डॉ. रघुनाथ माशेलकर हैं। तो वहीं 14 सितंबर 2021 को इस समिति ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को 101 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी। उस समय महाराष्ट्र डीजीआईपीआर ने रिपोर्ट स्वीकार करते हुए एक फोटो सहित ट्वीट किया। इसमें कहा गया कि इस समिति ने एक प्रेजेंटेशन दिया और उद्धव ठाकरे ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार सिफारिशों और सुझावों को तुरंत लागू करने के लिए कार्रवाई करेगी। खास बात यह है कि जब यह रिपोर्ट सौंपी गई तो संजय राउत भी मौजूद थे।
Mumbai, Maharashtra: Chief Minister Devendra Fadnavis says, “Today in the Cabinet meeting, we discussed the three-language policy. We have decided that a committee will be formed under the leadership of Dr. Narendra Jadhav to determine from which standard the languages should be… pic.twitter.com/vamyX5CNEX
— IANS (@ians_india) June 29, 2025
फडणवीस ने बताया इस रिपोर्ट का आठवां अध्याय भाषा के विषय पर है। पेज नंबर 56। इस उद्देश्य के लिए जो उप-समूह बनाया गया था, उसमें डॉ. सुखदेव थोरात, नागनाथ कोटापल्ले आदि सदस्य शामिल थे। लेकिन, उनमें से महत्वपूर्ण नाम शिवविद्या प्रबोधिनी और बालासाहेब ठाकरे आईएएस अकादमी के संस्थापक ट्रस्टी विजय कदम का है। यह विजय कदम उभाठा समूह के उपनेता हैं।
फडणवीस ने कहा कि मुद्दा क्रमांक 8.1 अंग्रेजी और हिंदी को पहली कक्षा से ही दूसरी भाषा के रूप में लागू किया जाना चाहिए। यदि कोई छात्र कक्षा 1 से 12 तक 12 साल तक अंग्रेजी सीखता है, तो वह अंग्रेजी भाषा को समझ सकेगा और आवश्यक पुस्तकें पढ़ सकेगा। वह इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य तकनीकी-व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए तैयार हो सकेगा।
उच्च शिक्षण संस्थानों में मराठी में पढ़ाने को प्राथमिकता देनी होगी। लेकिन, साथ ही, अंग्रेजी और हिंदी को कक्षा 1 से 12 तक दूसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो इसे कॉलेज शिक्षा के 3 या 4 वर्षीय डिग्री पाठ्यक्रमों में भी अनिवार्य किया जाना चाहिए।
‘सीक्रेट मीटिंग’ के बाद रातोंरात बदला निर्णय, फडणवीस के फैसले की इनसाइड स्टोरी
फडणवीस ने कहा कि विपक्ष कहता है, रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई। इसे स्वीकार करना ही होगा। लेकिन, हमने इसे लागू नहीं किया। इसे भी समझिए…14 सितंबर 2021 को यह रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद, यह 20 जनवरी 2022 को कैबिनेट के सामने आई। 7 जनवरी 2022 को इसके मिनट्स को मंजूरी दी गई। विषय क्रमांक 5 डॉ. माशेलकर समिति की रिपोर्ट विचारार्थ प्रस्तुत की गई। उक्त नीति को लागू करने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक कार्य समूह का गठन किया गया और समिति की सिफारिशों के अनुसार तीन चरणों में प्रस्तावित कार्रवाई को मंजूरी दी गई। इन मिनट्स पर तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव बालासाहेब ठाकरे के हस्ताक्षर हैं।
यानी त्रिभाषा फॉर्मूले को मंजूरी देने वाली कैबिनेट बैठक 20 जनवरी 2022 को उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में हुई थी।फडणवीस ने कहा कि अभी भी हमने 23 जून को एक बैठक की। उसमें स्पष्ट किया गया कि साहित्यकारों, भाषा विशेषज्ञों, राजनीतिक नेताओं और अन्य सभी तत्वों से चर्चा करने के बाद यदि आगे कोई निर्णय लेना होगा तो हम लेंगे। दादा भूसे को इसकी जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने प्रक्रिया शुरू की।
फडणवीस ने कहा कि भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने हिंदी भाषा के बारे में कहा था, एक भाषा लोगों को जोड़ती है। दो भाषाएं निश्चित रूप से उन्हें विभाजित करती हैं। इसे रोका नहीं जा सकता। भाषा से संस्कृति का विकास होता है। सभी भारतीय एकजुट होना चाहते हैं और एक समान संस्कृति विकसित करना चाहते हैं, इसलिए हम सभी का कर्तव्य है कि सभी भारतीय हिंदी को अपनी भाषा के रूप में स्वीकार करें।
फडणवीस ने कहा कि भले ही हमारा एक भाषाई राज्य हो, अगर कोई भारतीय इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है, तो उसे खुद को भारतीय कहने का कोई अधिकार नहीं है। भले ही वह 100 प्रतिशत महाराष्ट्रीयन, 100 प्रतिशत तमिल, 100 प्रतिशत गुजराती हो, वह सही मायने में भारतीय नहीं है। अगर मेरा प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाता है, तो भारत भारत नहीं रहेगा। यह अलग-अलग राष्ट्रीयताओं के लोगों का एक समूह होगा, जो एक-दूसरे के प्रति शत्रुतापूर्ण होंगे और वे एक-दूसरे के खिलाफ होंगे।