जानें कैसा है महाराष्ट्र का इतिहास, फोटो ( सो. सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: 1 मई 1960 को महाराष्ट्र एक स्वतंत्र राज्य के रूप में देश में स्थापित हुआ। महाराष्ट्र देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है, जिसे भौगोलिक दृष्टि से देखें तो इसके पश्चिम में अरब सागर स्थित है। दक्षिण दिशा में यह कर्नाटक से, दक्षिण-पूर्व में आंध्र प्रदेश और गोवा से, उत्तर-पश्चिम में गुजरात से तथा उत्तर में मध्य प्रदेश से घिरा हुआ है। महाराष्ट्र राज्य का तटीय क्षेत्र ‘कोंकण’ कहलाता है, जो इसके पश्चिमी भाग में फैला हुआ है। वर्तमान में महाराष्ट्र में कुल 36 जिले हैं। राजनीतिक दृष्टि से अगर बात की जाए तो महाराष्ट्र मे विधानसभा की 288 सीटें, विधान परिषद की 78 सीटें, लोकसभा की 48 सीटें और राज्यसभा की 19 सीटें हैं।
हम अगर महाराष्ट्र के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवपूर्ण रहा है। मौजूद ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, इस क्षेत्र में सबसे पहले सातवाहन वंश ने शासन किया, जिसके बाद वाकाटक वंश सत्ता में आया। इसके पश्चात यहां कलचुरी, चालुक्य, यादव, दिल्ली के खिलजी और बहमनी वंशों का प्रभाव रहा।
समय के साथ यह क्षेत्र अनेक छोटी-छोटी रियासतों में विभाजित हो गया। फिर सत्रहवीं सदी में छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य का उदय हुआ। शिवाजी ने बिखरी हुई शक्तियों को एकत्र कर एक संगठित और मजबूत सेना का निर्माण किया। शिवाजी की सेना के आगे मुगलों की एक न चल पाई। शिवाजी अपनी सेना की मदद से मुगलों को दक्षिण भारत में आगे बढ़ने से रोक दिया। लेकिन शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। शिवाजी के उत्तराधिकारियों की इस विफलता के कारण पेशवाओं ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली।
1761 की पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की हार के साथ उनकी शक्ति लगभग समाप्त हो गई। अंततः 1818 तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे मराठा क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहब के नेतृत्व में यहां के सैनिकों ने भाग लिया। इसके बाद महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने महाराष्ट्र के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में प्रेरित और संगठित किया।
महाराष्ट्र स्वतंत्रता संग्राम में सबसे आगे रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना भी यहीं हुई थी। मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य नगरों के अनेक नेताओं ने पहले लोकमान्य तिलक और बाद में महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के आंदोलन को गति दी। महात्मा गांधी ने भी अपने आंदोलन की आधारभूमि महाराष्ट्र को ही बनाया, और गांधी युग में सेवाग्राम राष्ट्रवादी गतिविधियों का केंद्र बना रहा।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद बम्बई प्रांत में वर्तमान महाराष्ट्र और गुजरात शामिल हुए थे। जब इन दोनों क्षेत्रों को अलग-अलग राज्यों के रूप में स्थापित करने का प्रस्ताव सामने आया, तो उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुंबई को एक केंद्रशासित प्रदेश बनाने का सुझाव दिया। उनका मानना था कि यदि मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी बनाए रखना है, तो इसे केंद्र के अधीन रखा जाना चाहिए। हालांकि, नेहरू का यह सुझाव स्वीकार नहीं किया गया। देश के पहले वित्त मंत्री और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री चिंतामणि देशमुख ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया और इसके विरोध में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
महाराष्ट्र से जुड़ी अन्य खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…
अंततः, बम्बई पुनर्गठन अधिनियम 1960 के तहत 1 मई 1960 को बम्बई राज्य को दो अलग-अलग राज्यों महाराष्ट्र और गुजरात में बांट दिया गया। विभाजन के बाद, मुंबई को महाराष्ट्र की राजधानी घोषित किया गया। बाद में, वर्ष 1995 में बम्बई का नाम बदलकर मुम्बई कर दिया गया।
महाराष्ट्र की राजनीति की बात करें तो शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) प्रमुख दल हैं। इनके अलावा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बहुजन विकास आघाड़ी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया जैसे कई अन्य दल भी यहां सक्रिय हैं। कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर राज्य में शासन किया था, जिसे ‘अघाड़ी सरकार’ कहा जाता है। इसके बाद शिवसेना और बीजेपी ने गठबंधन कर सरकार बनाई। फिलहाल वर्तमान में शिवसेना और बीजेपी गठबंधन की सरकार है।
महाराष्ट्र दिवस के खास मौके पर राज्य के विभिन्न हिस्सों में ध्वजारोहण और परेड के साथ भव्य समारोहों का आयोजन किया जाता है। इस दिन को पूरे महाराष्ट्र में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इन आयोजनों में प्रेरणादायक भाषणों और रंग-बिरंगी परेडों के जरिए जनता के जोश और उत्साह को देखा जाता है। इस अवसर पर राज्य सरकार एवं निजी संस्थान मिलकर कई नई योजनाओं और परियोजनाओं की शुरुआत करते हैं। इन कार्यक्रमों का एक उद्देश्य राज्य के पर्यटन क्षेत्र को प्रोत्साहित करना भी होता है, जिससे देशभर के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके।